कहते हैं जो ईश्वर के सच्चे भक्त हैं , केवल कर्मकांडी नहीं , निष्काम कर्म करते हैं , ईश्वर के बनाये इस संसार को सुन्दर , श्रेष्ठ बनाने में योगदान देते हैं उनका योगक्षेम स्वयं भगवान वहन करते हैं l गीता में कहा है --- मिलेगा वही, जिसमे भक्त का हित होगा l ऐसी इच्छा , आकांक्षा जिसका कोई आधार नहीं है , भगवान की उपासना से पूरी नहीं होगी l भगवान अपने भक्त का माँ की तरह ध्यान रखते हैं l
एक उदाहरण रामचरितमानस में है ---- जब नारद जी भगवान राम को वन में सीता को ढूंढते हुए विरह की स्थिति में देखते हैं तो उनके पास जाकर पूछते हैं ---- " एक बार आपने मुझे अपनी माया से मोहित कर दिया था , और मैं विवाह को आतुर था , तब आपने ऐसी माया रच दी कि मेरा विवाह नहीं हो पाया , तब व्याकुलता की स्थिति में मैंने शाप दे दिया था कि त्रेतायुग में जब राम के रूप में अवतार होगा तो ऐसी विरह की स्थिति से गुजरना होगा ---- तब आपने ऐसा क्यों किया ?
भगवान कहते हैं ----- ' कुपथ्य मांग जिमि व्याकुल रोगी , वैद्य न देई सुनो मुनि योगी l '
यदि कोई रोगी वैद्य से कुपथ्य मांगे तो वैद्य उसे वह नहीं देता क्योंकि वह रोगी का हित चाहता है l काम और क्रोध इनसान के सबसे बड़े शत्रु हैं , जो मेरा भक्त है उसके पास केवल मेरा ही बल होता है , इसलिए अपने भक्त के काम व क्रोध रूपी शत्रुओं को मारने की जिम्मेदारी तो मेरी है l तुम मेरे प्रिय भक्त हो l इन शत्रुओं से तुम्हारी रक्षा करना मेरी जिम्मेदारी है l "
हम ईश्वर के सच्चे भक्त - कर्मयोगी बने l
एक उदाहरण रामचरितमानस में है ---- जब नारद जी भगवान राम को वन में सीता को ढूंढते हुए विरह की स्थिति में देखते हैं तो उनके पास जाकर पूछते हैं ---- " एक बार आपने मुझे अपनी माया से मोहित कर दिया था , और मैं विवाह को आतुर था , तब आपने ऐसी माया रच दी कि मेरा विवाह नहीं हो पाया , तब व्याकुलता की स्थिति में मैंने शाप दे दिया था कि त्रेतायुग में जब राम के रूप में अवतार होगा तो ऐसी विरह की स्थिति से गुजरना होगा ---- तब आपने ऐसा क्यों किया ?
भगवान कहते हैं ----- ' कुपथ्य मांग जिमि व्याकुल रोगी , वैद्य न देई सुनो मुनि योगी l '
यदि कोई रोगी वैद्य से कुपथ्य मांगे तो वैद्य उसे वह नहीं देता क्योंकि वह रोगी का हित चाहता है l काम और क्रोध इनसान के सबसे बड़े शत्रु हैं , जो मेरा भक्त है उसके पास केवल मेरा ही बल होता है , इसलिए अपने भक्त के काम व क्रोध रूपी शत्रुओं को मारने की जिम्मेदारी तो मेरी है l तुम मेरे प्रिय भक्त हो l इन शत्रुओं से तुम्हारी रक्षा करना मेरी जिम्मेदारी है l "
हम ईश्वर के सच्चे भक्त - कर्मयोगी बने l
No comments:
Post a Comment