आलसी और अकर्मण्य के लिए संकटों और अभावों से छुटकारे का कोई उपाय नहीं l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है --- जो अपनी उपेक्षा करता है , उसे हर दिशा से उपेक्षा और तिरस्कार ही हाथ लगता है l दुर्बल शरीर को नई - नई किस्म की बीमारियाँ दबोचती हैं डरपोक को डराने के लिए जीवित ही नहीं मृतक भी भूत -प्रेत बनकर ढूंढते - खोजते आ पहुँचते हैं l आततायिओं को अपना शिकार पकड़ने के लिए कायरों की तलाश करनी पड़ती है l शंकाशील लोगों को बिल्ली भी रास्ता काटकर डरा देती है l अरबों - खरबों मील दूर रहने वाले ग्रह - नक्षत्र भी अपनी प्रकोप मुद्रा उन्ही को दिखाते हैं जिन्हें अकारण भयभीत होने में मजा आता है l आचार्यजी का मत है कि अपनी दुर्बलताओं को खोजें , उनसे घ्रणा करें और उन्हें उखाड़ फेंकने के लिए जुट जाएँ l
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