विश्व विजयी सिकन्दर इसी क्रम में पड़कर एक दिन नष्ट हुआ और निराश होकर इस संसार से विदा हुआ l दोष सिकन्दर का भी नहीं , बल्कि राजमद का था , जो सम्पूर्ण पृथ्वी को अधिकार में करने पर भी संतुष्ट नहीं होता l
सिकन्दर ने भारतीय राजाओं की आपसी फूट का लाभ उठाया l उसने तक्षशिला के राजा आम्भीक को पचास लाख रूपये व अन्य सम्मान का लालच देकर अपनी और मिला लिया l मनुष्य का लालच , स्वार्थ , अहंकार सामूहिक जीवन के लिए घातक है -- कहते हैं जब उच्च पद पर बैठा व्यक्ति कोई अपराध करता है तो अन्य लोगों को भी वैसा करने में कोई संकोच नहीं रहता l इसका परिणाम सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए दुखदायी होता है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने वाड्मय ' महापुरुषों के अविस्मरणीय जीवन प्रसंग -- 2 में पृष्ठ 1.35 पर लिखा है --- " जब कोई पापी किसी मर्यादा की रेखा उल्लंघन कर उदाहरण बन जाता है , तब अनेकों को उसका उल्लंघन करने में अधिक संकोच नहीं रहता l "
तक्षशिला के राजा आम्भीक की देखादेखी अन्य राजा भी देशद्रोही होकर सिकन्दर से जा मिले l एक ओर सिकन्दर और उसके साथ देशद्रोही राजा और दूसरी और अकेले महाराज पुरु l
भारतीय इतिहास में केवल एक महाराज पुरु ही ऐसे वीर पुरुष हैं , जिन्होंने पराजित होने पर भी विजयी को पीछे हटने पर विवश कर दिया l
सिकन्दर ने भारतीय राजाओं की आपसी फूट का लाभ उठाया l उसने तक्षशिला के राजा आम्भीक को पचास लाख रूपये व अन्य सम्मान का लालच देकर अपनी और मिला लिया l मनुष्य का लालच , स्वार्थ , अहंकार सामूहिक जीवन के लिए घातक है -- कहते हैं जब उच्च पद पर बैठा व्यक्ति कोई अपराध करता है तो अन्य लोगों को भी वैसा करने में कोई संकोच नहीं रहता l इसका परिणाम सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए दुखदायी होता है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने वाड्मय ' महापुरुषों के अविस्मरणीय जीवन प्रसंग -- 2 में पृष्ठ 1.35 पर लिखा है --- " जब कोई पापी किसी मर्यादा की रेखा उल्लंघन कर उदाहरण बन जाता है , तब अनेकों को उसका उल्लंघन करने में अधिक संकोच नहीं रहता l "
तक्षशिला के राजा आम्भीक की देखादेखी अन्य राजा भी देशद्रोही होकर सिकन्दर से जा मिले l एक ओर सिकन्दर और उसके साथ देशद्रोही राजा और दूसरी और अकेले महाराज पुरु l
भारतीय इतिहास में केवल एक महाराज पुरु ही ऐसे वीर पुरुष हैं , जिन्होंने पराजित होने पर भी विजयी को पीछे हटने पर विवश कर दिया l
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