पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- ' दुष्टता में अपनी कोई शक्ति नहीं , वह अमरबेल की तरह छाई और चूसती रहती है l उसे उठाकर एक कोने में पटक भर दिया जाये तो बेमौत मरने में देर न लगेगी l गुंडागर्दी इसलिए जीवित , प्रबल और बलिष्ठ है क्योंकि उसे सहन किया जाता है l संगठित प्रतिरोध सामने नहीं आता l जिस पर मुसीबत आये वही भुगते , शेष तमाशा देखें की नीति अपनाने पर तो एक चिनगारी समूचे गाँव को स्वाहा कर सकती है l मिलजुलकर प्रतिरोध न हो तो न अग्निकांड की विनाश लीला रुक सकती है और न मुट्ठी भर गुंडों की आततायी आक्रामकता पर अंकुश लग सकता है l
अनैतिकता , अंध परम्परा की छत्रछाया में पलने वाली अनेकानेक बुराइयाँ मात्र इसलिए सीना तानकर खड़ी हैं क्योंकि उन्हें संगठित प्रतिरोध का कभी सामना नहीं करना पड़ा l एक छोटे से विष बीज को बढ़ने और फलने - फूलने का अवसर तभी मिलता है जब उसे सहन करने वाले निरंतर खाद - पानी पहुंचाते रहें l
जामवंत ने उदास बैठे हनुमानजी को आत्मबोध कराया तो वे समुद्र लांघने और लंका उजाड़ने में सफल हो गए उसी तरह जाग्रत जन शक्ति आज की विपत्ति और विभिन्न समस्याओं को सुलझा सकती है l
अनैतिकता , अंध परम्परा की छत्रछाया में पलने वाली अनेकानेक बुराइयाँ मात्र इसलिए सीना तानकर खड़ी हैं क्योंकि उन्हें संगठित प्रतिरोध का कभी सामना नहीं करना पड़ा l एक छोटे से विष बीज को बढ़ने और फलने - फूलने का अवसर तभी मिलता है जब उसे सहन करने वाले निरंतर खाद - पानी पहुंचाते रहें l
जामवंत ने उदास बैठे हनुमानजी को आत्मबोध कराया तो वे समुद्र लांघने और लंका उजाड़ने में सफल हो गए उसी तरह जाग्रत जन शक्ति आज की विपत्ति और विभिन्न समस्याओं को सुलझा सकती है l
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