3 October 2019

WISDOM-----

   पुरुषार्थी  और  परिश्रमी  व्यक्ति  कभी   साधनों , सुविधाओं  और  परिस्थितियों  का   मुंह  नहीं  ताकते,  निरंतर  आगे  बढ़ते  ही  रहते  हैं   l  
ग्यारहवीं  शताब्दी  में    जब  महमूद  गजनवी  ने  खीवा  पर  आक्रमण  किया   तो  अलबेरुनी  मात्र  एकमात्र  ऐसे  व्यक्ति  थे  जिन्होंने  जनमानस  को  विदेशी  आक्रमण  का  प्रतिरोध  करने  के  लिए  प्रेरित  किया  l  वे  अपने  प्रयासों  में  सफल  नहीं  हुए  और  उन्हें  देश निकाला  दिया  गया  l  उन्होंने  अपना  निर्वासित  जीवन  भारत  में  व्यतीत  करने  का  निश्चय  किया   l
  भारत  आकर  अलबेरुनी  ने  संस्कृत   भाषा   सीखी  l  और  संस्कृत  वाड्मय  का  अध्ययन  करने  के  बाद   वे  जिन  भारतीय  ग्रंथों  से  सर्वाधिक  प्रभावित  हुए  उनमे   भगवद्गीता  सर्वप्रथम  है   l   उन्होंने  अपनी  20  पुस्तकों  में   अनेक  स्थानों  पर  गीता   के  अध्ययन - मनन    का  महत्व   मानव - कल्याण  के  लिए   प्रतिपादित  किया  है   l  अरबी  जनता  जो   अब  तक  भारतीय  धर्म  को  कुफ्र  की  निगाह  से  देखती  थी  , वहां  के  प्रबुद्ध  वर्ग  ने   अलबेरुनी  के  माध्यम  से  गीता  का  परिचय  प्राप्त  कर  उसकी  मुक्त  कंठ  से  प्रशंसा  की   l 
अलबेरुनी  ने  वराहमिहिर  की  वृहतसंहिता   तथा  लघु  जातक  कथाओं    और  चरक  संहिता  का  अरबी  में  अनुवाद  किया  l इसके  बाद  उन्होंने  भारतीय  दर्शन  ग्रंथों  का  अरबी  में  अनुवाद  किया   l 
 'तारीखल  हिंदू '  एक  ऐतिहासिक   कृति  है  --- जिसमे  सैकड़ों  स्थानों   पर   गीता  के  श्लोक  उद्धृत   किये  हैं   l ऐसा  कहा जाता  है  कि  अलबेरुनी ने  146  पुस्तकें  लिखीं  ,  लेकिन  अब  अधिकांश  अनुपलब्ध  हैं  l   

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