सितम्बर 1993 : अखण्ड ज्योति में प्रकाशित एक लेख का अंश ------------ देव संस्कृति में जब संस्कृत का जन - सामान्य में प्रचार - प्रसार था , उस समय भारतवर्ष में सर्वाधिक प्रतिष्ठा ऐसे लोगों को प्राप्त होती थी जिनके जीवन में त्याग , तपस्या , निस्पृहता , आदर्शवादिता , चरित्र निष्ठा , लोकसेवी वृत्ति और ईश्वर- निष्ठा की प्रधानता होती थी l
दार्शनिक उदारता और आचरण की मर्यादा इस संस्कृति के मूलतत्व हैं l चिंतन की जितनी उदारता इस संस्कृति का अंग रही है , वैसी विश्व में कहीं भी देखी सुनी नहीं गई l दार्शनिक मत विभिन्नता होने पर एक दूसरे के विचारों को चुनौती देने की परंपरा रही है l परन्तु इसके कारण हिंसा या शरीर बल का प्रयोग कभी नहीं हुआ l
इसके विपरीत पश्चिमी संस्कृति में दार्शनिक मत भिन्नता प्रकट करने पर मंसूर से लेकर ईसा तक को फाँसी पर चढ़ाना पड़ा l
गैलीलियो ने ग्रह - गति सम्बन्धी सिद्धांत का प्रतिपादन किया तो उन्हें नास्तिक कहा गया और जान गंवानी पड़ी l जबकि भारत में आर्य भट्ट और वराह मिहिर दोनों भू - भ्रमण सिद्धांत के बारे में परस्पर विरोधी विचार रखते हुए भी एक दूसरे को महान गणितज्ञ मानते रहे और जनता दोनों का समान रूप से आदर करती रही l
देव संस्कृति में श्रेष्ठ भाव संवेदनाओं , उत्कृष्ट चिंतन और आदर्श कर्तव्य पर बल दिया गया है और सभी धर्म ग्रंथों में सत्य , धर्म और श्रेयस का जयगान है l यही तथ्य नर से नारायण बनने की प्रेरणा देते हैं l
दार्शनिक उदारता और आचरण की मर्यादा इस संस्कृति के मूलतत्व हैं l चिंतन की जितनी उदारता इस संस्कृति का अंग रही है , वैसी विश्व में कहीं भी देखी सुनी नहीं गई l दार्शनिक मत विभिन्नता होने पर एक दूसरे के विचारों को चुनौती देने की परंपरा रही है l परन्तु इसके कारण हिंसा या शरीर बल का प्रयोग कभी नहीं हुआ l
इसके विपरीत पश्चिमी संस्कृति में दार्शनिक मत भिन्नता प्रकट करने पर मंसूर से लेकर ईसा तक को फाँसी पर चढ़ाना पड़ा l
गैलीलियो ने ग्रह - गति सम्बन्धी सिद्धांत का प्रतिपादन किया तो उन्हें नास्तिक कहा गया और जान गंवानी पड़ी l जबकि भारत में आर्य भट्ट और वराह मिहिर दोनों भू - भ्रमण सिद्धांत के बारे में परस्पर विरोधी विचार रखते हुए भी एक दूसरे को महान गणितज्ञ मानते रहे और जनता दोनों का समान रूप से आदर करती रही l
देव संस्कृति में श्रेष्ठ भाव संवेदनाओं , उत्कृष्ट चिंतन और आदर्श कर्तव्य पर बल दिया गया है और सभी धर्म ग्रंथों में सत्य , धर्म और श्रेयस का जयगान है l यही तथ्य नर से नारायण बनने की प्रेरणा देते हैं l
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