सामान्यत: सफलता को एक मूल्यवान उपलब्धि माना जाता है l प्रत्येक मनुष्य सफल होना चाहता है l कोई व्यक्ति यश और सम्मान को सफलता का आधार मानता है l कोई धन और पद - प्रतिष्ठा को l
मानवीय गुणों से रहित सफलताएं कीर्ति और मनुष्य के रूप में प्रतिष्ठा नहीं देतीं l लोगों की दृष्टि बाहरी सफलताओं पर ही अधिक टिकती है l जिन्हे धनवान , प्रतिष्ठित और पहुँच वाला आदमी मान लिया जाता है , लोग उसी के पीछे भागने - दौड़ने लगते हैं l उससे लाभ उठाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं l ये सभी उपलब्धियां मनुष्य की महत्वाकांक्षाओं और उसके लिए किये जाने वाले प्रयासों का परिणाम हैं l
लेकिन महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति को ही सफलता की कसौटी नहीं माना जा सकता और इस आधार पर किसी को सफल और विभूतिवान प्रमाणित नहीं किया जा सकता l
सफलता का एक दूसरा पक्ष भी होता है कि व्यक्ति अपने मानवीय गुणों , सामाजिक आदर्शों और अपनी संस्कृति के प्रति कितना निष्ठावान है ? सफल तो अनीति पूर्वक कमाने वाले , अत्याचारी व अपराधी भी हो सकते हैं l लेकिन इस आधार पर उन्हें सफल मनुष्य नहीं माना जा सकता l
वस्तुत: बाहरी सफलताओं की अपेक्षा नैतिकता और दृष्टिकोण की उत्कृष्टता के आधार पर ही मनुष्य का मूल्यांकन किया जाना चाहिए l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- " सफलता के विभिन्न स्वरूपों , यश , प्रतिष्ठा और सम्पन्नता की कसौटियां बदलनी पड़ेंगी तथा सद्विचारों , सत्प्रवृत्तियों एवं सत्कर्मों को उनके स्थान पर प्रतिष्ठित करना होगा l "
मानवीय गुणों से रहित सफलताएं कीर्ति और मनुष्य के रूप में प्रतिष्ठा नहीं देतीं l लोगों की दृष्टि बाहरी सफलताओं पर ही अधिक टिकती है l जिन्हे धनवान , प्रतिष्ठित और पहुँच वाला आदमी मान लिया जाता है , लोग उसी के पीछे भागने - दौड़ने लगते हैं l उससे लाभ उठाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं l ये सभी उपलब्धियां मनुष्य की महत्वाकांक्षाओं और उसके लिए किये जाने वाले प्रयासों का परिणाम हैं l
लेकिन महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति को ही सफलता की कसौटी नहीं माना जा सकता और इस आधार पर किसी को सफल और विभूतिवान प्रमाणित नहीं किया जा सकता l
सफलता का एक दूसरा पक्ष भी होता है कि व्यक्ति अपने मानवीय गुणों , सामाजिक आदर्शों और अपनी संस्कृति के प्रति कितना निष्ठावान है ? सफल तो अनीति पूर्वक कमाने वाले , अत्याचारी व अपराधी भी हो सकते हैं l लेकिन इस आधार पर उन्हें सफल मनुष्य नहीं माना जा सकता l
वस्तुत: बाहरी सफलताओं की अपेक्षा नैतिकता और दृष्टिकोण की उत्कृष्टता के आधार पर ही मनुष्य का मूल्यांकन किया जाना चाहिए l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- " सफलता के विभिन्न स्वरूपों , यश , प्रतिष्ठा और सम्पन्नता की कसौटियां बदलनी पड़ेंगी तथा सद्विचारों , सत्प्रवृत्तियों एवं सत्कर्मों को उनके स्थान पर प्रतिष्ठित करना होगा l "
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