पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ---- ' विचारों की शक्ति अपार है l विचार कर्म के प्रेरक हैं l वह अच्छे कर्म में लग जाएँ तो अच्छे और बुरे मार्ग में प्रवृत हो जाएँ तो बुरे परिणाम प्राप्त होते हैं l यदि कोई व्यक्ति किसी अकेली कोठरी में बंद होकर विचार करे और ऐसा ही करते हुए मर जाये तो वे विचार कुछ समय बाद कोठरी की दीवारों को भेदकर बाहर निकल पड़ेंगे और अनेकों को प्रभावित किए बिना न रहेंगे l '
आज के सामाजिक और व्यक्तिक जीवन की विवेचना करते हुए उन्होंने लिखा है --- स्वार्थ और लालच में डूबा हुआ मनुष्य एक दूसरे को नीचा दिखाने और नोच खाने की कुटिलता में संलग्न है l जन समुदाय को इस विडम्बना से उबारने के लिए उसके विचारों में क्रांतिकारी परिवर्तन करना आवश्यक है l इस परिवर्तन के बाद ही मनुष्य समझ सकेगा कि शरीर- भगवान का मंदिर है l
आचार्य जी का कहना है --- ' तुम लोग मेरे विचारों के संवाहक बनो l हमारे विचार क्रांति के बीज हैं l ये फैल गए तो सारी विश्व - वसुधा को हिलाकर रख देंगे l '
यूनानी दर्शन के पितामह महात्मा सुकरात को जब विष का प्याला दिया गया , उनकी मृत्यु नजदीक देख शिष्य बहुत दुःखी थे l तब सुकरात शिष्यों को समझने लगे ---- ' तुम सबके निराश होने का कारण यही है कि तुम लोग मुझे व्यक्ति के रूप में पहचानते आये हो l आज जबकि इसके खो जाने का , बिछुड़ने का समय आ गया सब के सब विकल हो l पर मैं व्यक्ति था ही कब ? यदि मेरे द्वारा किसी का भला हुआ भी है तो सिर्फ विचारों के कारण l
विष का प्याला हाथ में लेते हुए उन्होंने कहा ---- ' मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ l विश्वास रखो --- विचारों के रूप में मैं जीवित था , जीवित हूँ और जीवित रहूँगा l '
उनके आखिरी शब्द थे ---- ' चिंतित मत हो , घबड़ाओ नहीं l तुम सभी विचारों के रूप में , ज्ञान के रूप में और मार्गदर्शक के रूप में हर पल , हर क्षण मुझे महसूस करोगे l ध्यान रखना कर्म की शक्ति मंद न पड़े l '
आज के सामाजिक और व्यक्तिक जीवन की विवेचना करते हुए उन्होंने लिखा है --- स्वार्थ और लालच में डूबा हुआ मनुष्य एक दूसरे को नीचा दिखाने और नोच खाने की कुटिलता में संलग्न है l जन समुदाय को इस विडम्बना से उबारने के लिए उसके विचारों में क्रांतिकारी परिवर्तन करना आवश्यक है l इस परिवर्तन के बाद ही मनुष्य समझ सकेगा कि शरीर- भगवान का मंदिर है l
आचार्य जी का कहना है --- ' तुम लोग मेरे विचारों के संवाहक बनो l हमारे विचार क्रांति के बीज हैं l ये फैल गए तो सारी विश्व - वसुधा को हिलाकर रख देंगे l '
यूनानी दर्शन के पितामह महात्मा सुकरात को जब विष का प्याला दिया गया , उनकी मृत्यु नजदीक देख शिष्य बहुत दुःखी थे l तब सुकरात शिष्यों को समझने लगे ---- ' तुम सबके निराश होने का कारण यही है कि तुम लोग मुझे व्यक्ति के रूप में पहचानते आये हो l आज जबकि इसके खो जाने का , बिछुड़ने का समय आ गया सब के सब विकल हो l पर मैं व्यक्ति था ही कब ? यदि मेरे द्वारा किसी का भला हुआ भी है तो सिर्फ विचारों के कारण l
विष का प्याला हाथ में लेते हुए उन्होंने कहा ---- ' मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ l विश्वास रखो --- विचारों के रूप में मैं जीवित था , जीवित हूँ और जीवित रहूँगा l '
उनके आखिरी शब्द थे ---- ' चिंतित मत हो , घबड़ाओ नहीं l तुम सभी विचारों के रूप में , ज्ञान के रूप में और मार्गदर्शक के रूप में हर पल , हर क्षण मुझे महसूस करोगे l ध्यान रखना कर्म की शक्ति मंद न पड़े l '
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