जिसकी सोच सकारात्मक होती है वह अपनी निंदा सुनकर कभी विचलित नहीं होता , उस बुराई में भी अच्छाई देख लेता है l ----- एक बार गांधीजी ट्रेन से जा रहे थे , अजमेर स्टेशन पर एक सज्जन चढ़े और वहीँ खड़े - खड़े गांधीजी को बुरा - भला कहने लगे l बापू उनकी बातें सुनते हुए बोले कृपया बैठ जाएँ , इससे आप को सुनाने में सुविधा होगी और मुझे सुनने में l तभी गार्ड ने सीटी दी और गाड़ी ने प्लेटफार्म छोड़ दिया l उन महाशय को इसका कोई ख्याल नहीं रहा , उनका आलोचना करना जारी रहा l तभी टिकट चेकर ने डिब्बे में प्रवेश किया और टिकट माँगा ल अब ये आलोचक महोदय घबरा गए l तत्काल गांधीजी कह उठे --- " यह मेरे साथ हैं l अभी अजमेर से सवार हुए हैं जल्दी के कारण टिकट नहीं बन सका l इसलिए इनका टिकट बना दीजिए l " और गांधीजी ने उनका टिकट बनवा दिया l टिकट बनाकर टी. टी. जैसे ही आगे बढ़ा , गांधीजी ने सहज भाव से आलोचक से कहा --- आप अपनी बात जारी रखिये l
लेकिन अब आलोचक महोदय से कुछ कहते नहीं बन रहा था l गांधीजी के कारण वह अपनी फजीहत होने से बच गया l वह सोच रहा था कि कैसा विचित्र व्यक्ति है यह जो आलोचक के प्रति भी मैत्री भाव रखता है l बापू ने उसके असमंजस को भाँप लिया और कहा ---- ' प्रत्येक में दोष भी रहते हैं और गुण भी l मेरी भी यही स्थिति है l पर वास्तविक मनुष्य वही है जो अपने दोषों को खोजकर उनके निवारण का प्रयत्न करे l आपने दोषों को खोजने में मेरी मदद की , अत: आपसे बड़ा मित्र और कौन होगा l "
लेकिन अब आलोचक महोदय से कुछ कहते नहीं बन रहा था l गांधीजी के कारण वह अपनी फजीहत होने से बच गया l वह सोच रहा था कि कैसा विचित्र व्यक्ति है यह जो आलोचक के प्रति भी मैत्री भाव रखता है l बापू ने उसके असमंजस को भाँप लिया और कहा ---- ' प्रत्येक में दोष भी रहते हैं और गुण भी l मेरी भी यही स्थिति है l पर वास्तविक मनुष्य वही है जो अपने दोषों को खोजकर उनके निवारण का प्रयत्न करे l आपने दोषों को खोजने में मेरी मदद की , अत: आपसे बड़ा मित्र और कौन होगा l "
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