इस तथ्य को समझाने वाली एक कथा है ------ बोधिसत्व एक दिन सुन्दर कमल के तालाब पास बैठे वायु सेवन कर रहे थे l सुगंध इतनी आकर्षक थी कि वे सरोवर में उतारकर कमल के निकट जाकर गंध पान कर तृप्त हो रहे थे l तभी किसी देवकन्या का स्वर सुनाई दिया --- " तुम बिना कुछ दिए ही इन पुष्पों की सुरभि का सेवन कर रहे हो l यह चोर कर्म है , तुम गंध चोर हो " l तथागत उसकी बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गए l तभी एक व्यक्ति आया और सरोवर में घुसकर निर्दयता पूर्वक फूल तोड़ने लगा l उसे रोकने के लिए किसी ने मना नहीं किया l तब बुद्ध देव ने उस कन्या से कहा ---' मैंने तो केवल गंधपान ही किया , पुष्प नहीं तोड़े , तब भी तुमने मुझे चोर कहा जबकि उस व्यक्ति ने निर्दयता पूर्वक तालाब में घुसकर कमल पुष्प तोड़े - मरोड़े , किसी ने उसे मना भी नहीं किया l '
तब वह देवकन्या गंभीर होकर कहने लगी ---- " तपस्वी ! लोभ तथा तृष्णाओं में डूबे संसारी मनुष्य , धर्म तथा अधर्म में भेद नहीं कर पाते l अत : उन पर धर्म रक्षा का भार नहीं है किन्तु जो धर्मरत हैं , सद - असद का ज्ञाता है , नित्य अधिक से अधिक पवित्रता तथा महानता के लिए सतत प्रयत्नशील है l उसका तनिक सा पथ भ्रष्ट होना एक बड़ा पातक बन जाता है l " बोधिसत्व ने मर्म को समझ लिया और उन्हें पश्चाताप हुआ l
तब वह देवकन्या गंभीर होकर कहने लगी ---- " तपस्वी ! लोभ तथा तृष्णाओं में डूबे संसारी मनुष्य , धर्म तथा अधर्म में भेद नहीं कर पाते l अत : उन पर धर्म रक्षा का भार नहीं है किन्तु जो धर्मरत हैं , सद - असद का ज्ञाता है , नित्य अधिक से अधिक पवित्रता तथा महानता के लिए सतत प्रयत्नशील है l उसका तनिक सा पथ भ्रष्ट होना एक बड़ा पातक बन जाता है l " बोधिसत्व ने मर्म को समझ लिया और उन्हें पश्चाताप हुआ l
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