लोभ , लालच , कामना वासना के जाल में मनुष्य इस तरह उलझ गया है कि उसके हृदय में संवेदना का स्रोत ही सूख गया है l कभी - कभी प्रकृति भी ऐसी विकट परिस्थितियां रचकर मनुष्य की परीक्षा लेती है कि उच्च आदर्शों की बात करने वाले मनुष्य की सच्चाई क्या है ?
मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति को उपेक्षित किया , जल , थल , वायु समूचे पर्यावरण को प्रदूषित कर दिया, अपनी मानसिक कमजोरियों से , अनैतिक और अपराधिक गतिविधियों से वातावरण में नकारात्मकता भर दी l
प्रकृति हमें विभिन्न तरीकों से समय - समय पर सन्देश देती रही की-- सुधर जाओ , सन्मार्ग पर चलो लेकिन मनुष्य ने समझा नहीं l इस बार प्रकृति अपनी उपेक्षा सहते- सहते बहुत क्रुद्ध हो गईं l कब किस पर प्रकोप हो जाये ---- कोई नहीं जानता l
हम प्रकृति के सन्देश को समझें , शासकीय नियमों में रहते हुए संवेदनशील बने , गरीबी , मजबूरी , जाति , धर्म , रंग , ऊंच - नीच आदि विभिन्न आधारों पर किसी को उपेक्षित न करें l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- इस संसार की सभी समस्याओं का एकमात्र हल संवेदना है l हम किसी को दुःख न दें l अपनी सामर्थ्य के अनुसार उसकी पीड़ा का निवारण करें l
मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति को उपेक्षित किया , जल , थल , वायु समूचे पर्यावरण को प्रदूषित कर दिया, अपनी मानसिक कमजोरियों से , अनैतिक और अपराधिक गतिविधियों से वातावरण में नकारात्मकता भर दी l
प्रकृति हमें विभिन्न तरीकों से समय - समय पर सन्देश देती रही की-- सुधर जाओ , सन्मार्ग पर चलो लेकिन मनुष्य ने समझा नहीं l इस बार प्रकृति अपनी उपेक्षा सहते- सहते बहुत क्रुद्ध हो गईं l कब किस पर प्रकोप हो जाये ---- कोई नहीं जानता l
हम प्रकृति के सन्देश को समझें , शासकीय नियमों में रहते हुए संवेदनशील बने , गरीबी , मजबूरी , जाति , धर्म , रंग , ऊंच - नीच आदि विभिन्न आधारों पर किसी को उपेक्षित न करें l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- इस संसार की सभी समस्याओं का एकमात्र हल संवेदना है l हम किसी को दुःख न दें l अपनी सामर्थ्य के अनुसार उसकी पीड़ा का निवारण करें l
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