राजा विक्रमादित्य के समय की बात है --- राजा रात्रि को वेश बदलकर अपनी प्रजा का हाल जानने जाया करते थे l इसी क्रम में वे एक रात्रि को एक गाँव में पहुंचे , वहां एक घर से उन्हें कराहने की आवाज आई l पूछने पर पता चला कि उस ग्रामीण की पत्नी प्रसव वेदना से कराह रही है l ग्रामीण ने राजा को पहचाना नहीं , फिर कहा आप बाहर बैठो , पुत्र जन्म होगा , हमारी ख़ुशी में सम्मिलित होना l राजा बरामदे में चारपाई पर विश्राम करने लगे l थोड़ी ही देर में बच्चे के रोने की आवाज आई और ग्रामीण ने आकर राजा को पुत्र जन्म की खुशखबरी सुनाई l
राजा को निद्रा नहीं आ रही थी वे टहल रहे थे l अचानक उन्होंने देखा एक आकृति नवजात शिशु के कमरे में प्रवेश करने जा रही है l राजा विक्रमादित्य ने तुरंत जाकर उसे रोका और पूछा -- इतनी रात , को तुम इस कमरे में क्यों जा रहे हो ?
उस आकृति ने कहा --- ' मैं विधाता हूँ , इस बच्चे का भाग्य लिखने जा रही हूँ l '
राजा ने रोका नहीं , लेकिन जब विधाता बाहर आये तो राजा ने उन्हें रोक लिया और कहा कि वे बताएं कि उसके भाग्य में क्या लिखा है
विधाता ने कहा -- और बातें तो हम नहीं बताएँगे , लेकिन मृत्यु अटल है , उस पल को बदला नहीं जा सकता l विधाता ने राजा को बता दिया कि इस बालक को 15 वर्ष की आयु में निश्चित समय में शेर खा जायेगा l
राजा विक्रमादित्य बहुत वीर थे , उन्होंने विधाता के इस लेख को बदलने का निश्चय किया l प्रात:काल होने पर ग्रामीण को अपना परिचय दिया , उस बालक की परवरिश की जिम्मेदारी ली फिर राज्य में पहुंचकर एक बहुत मजबूत महल बनवाना शुरू किया जिसमे शेर तो क्या एक परिंदा भी पर नहीं मार सकता था l बालक 15 वर्ष का हुआ , उसे उस महल के बीचोबीच एक बड़े सुरक्षित कमरे में रखा गया , उसके मन बहलाने का हर सामान वहां था l कमरे को बहुत सुन्दर पेंटिंग , पक्षियों , जानवरों के चित्र आदि से सजा रखा था l विधाता द्वारा बताये निश्चित समय से बहुत पहले ही राजा स्वयं तलवार लेकर अपनी सेना सहित उपस्थित थे l सभी चौकन्ने थे l निश्चित पल पर शेर की दहाड़ सुनाई दी , सब लोग बालक के कमरे की ओर दौड़े , देखा खून से लथपथ बालक मरा पड़ा है l कहते हैं दीवार पर बने शेर के चित्र ने ही शेर का रूप ले लिया और बालक का वध कर दिया l
कथा में सत्यता हो न हो , यह तो सत्य है कि मृत्यु अटल है , जो इस संसार में आया है उसे जाना है l आप किसी को हजार तालों में बंद कर दो , जब हमें मिली हुई साँसे पूरी हो गईं , तब उससे एक पल ज्यादा के लिए भी संसार की कोई ताकत नहीं रोक सकती l
हाँ , हमारे धर्म ग्रंथों में बताया गया है और आचार्य , ऋषियों ने इस बात पर बहुत जोर दिया है कि निरंतर सत्कर्म कर के हम अकाल मृत्यु को रोक सकते हैं , बड़ी से बड़ी दुर्घटना एक छोटी सी सुई चुभने में बदल सकती है , हमारे सत्कर्म , हमारा निश्छल मन हमारे परिवार पर आये हुए बड़े से बड़े संकट को टाल सकता है l बस ! सत्कर्मों की पूंजी और ईश्वर की कृपा होनी चाहिए l
राजा को निद्रा नहीं आ रही थी वे टहल रहे थे l अचानक उन्होंने देखा एक आकृति नवजात शिशु के कमरे में प्रवेश करने जा रही है l राजा विक्रमादित्य ने तुरंत जाकर उसे रोका और पूछा -- इतनी रात , को तुम इस कमरे में क्यों जा रहे हो ?
उस आकृति ने कहा --- ' मैं विधाता हूँ , इस बच्चे का भाग्य लिखने जा रही हूँ l '
राजा ने रोका नहीं , लेकिन जब विधाता बाहर आये तो राजा ने उन्हें रोक लिया और कहा कि वे बताएं कि उसके भाग्य में क्या लिखा है
विधाता ने कहा -- और बातें तो हम नहीं बताएँगे , लेकिन मृत्यु अटल है , उस पल को बदला नहीं जा सकता l विधाता ने राजा को बता दिया कि इस बालक को 15 वर्ष की आयु में निश्चित समय में शेर खा जायेगा l
राजा विक्रमादित्य बहुत वीर थे , उन्होंने विधाता के इस लेख को बदलने का निश्चय किया l प्रात:काल होने पर ग्रामीण को अपना परिचय दिया , उस बालक की परवरिश की जिम्मेदारी ली फिर राज्य में पहुंचकर एक बहुत मजबूत महल बनवाना शुरू किया जिसमे शेर तो क्या एक परिंदा भी पर नहीं मार सकता था l बालक 15 वर्ष का हुआ , उसे उस महल के बीचोबीच एक बड़े सुरक्षित कमरे में रखा गया , उसके मन बहलाने का हर सामान वहां था l कमरे को बहुत सुन्दर पेंटिंग , पक्षियों , जानवरों के चित्र आदि से सजा रखा था l विधाता द्वारा बताये निश्चित समय से बहुत पहले ही राजा स्वयं तलवार लेकर अपनी सेना सहित उपस्थित थे l सभी चौकन्ने थे l निश्चित पल पर शेर की दहाड़ सुनाई दी , सब लोग बालक के कमरे की ओर दौड़े , देखा खून से लथपथ बालक मरा पड़ा है l कहते हैं दीवार पर बने शेर के चित्र ने ही शेर का रूप ले लिया और बालक का वध कर दिया l
कथा में सत्यता हो न हो , यह तो सत्य है कि मृत्यु अटल है , जो इस संसार में आया है उसे जाना है l आप किसी को हजार तालों में बंद कर दो , जब हमें मिली हुई साँसे पूरी हो गईं , तब उससे एक पल ज्यादा के लिए भी संसार की कोई ताकत नहीं रोक सकती l
हाँ , हमारे धर्म ग्रंथों में बताया गया है और आचार्य , ऋषियों ने इस बात पर बहुत जोर दिया है कि निरंतर सत्कर्म कर के हम अकाल मृत्यु को रोक सकते हैं , बड़ी से बड़ी दुर्घटना एक छोटी सी सुई चुभने में बदल सकती है , हमारे सत्कर्म , हमारा निश्छल मन हमारे परिवार पर आये हुए बड़े से बड़े संकट को टाल सकता है l बस ! सत्कर्मों की पूंजी और ईश्वर की कृपा होनी चाहिए l
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