वैज्ञानिक प्रगति के इस युग में मनुष्य को सब कुछ मिला परन्तु जो हमसे छीन गया वह है ---- मानवीय संवेदना l संवेदनहीन व्यक्ति और समाज ही व्यवसाय कर सकता है , वह लाभ - हानि ढूंढता है l चिकित्सा और चिकित्स्क वहीँ प्रभावशाली हैं , जहाँ सम्पन्नता है , अन्यथा निर्धन रोगी सड़कों और गलियों में दम तोड़ देता है l
बीमारी , महामारी न ऊंच - नीच देखती , न जात - पांत , न अमीर - गरीब l एक ओर गरीब व्यक्ति अपनी गरीबी , अभाव , भूख , रहने को घर नहीं , गाँव में अच्छी चिकित्सा सुविधाएँ नहीं और शहरों में व्यवसायिक लूट की वजह से मरता है l तो दूसरी ओर अमीर , धनसम्पन्न व्यक्ति भोग - विलास का जीवन जीने , कामना - वासना की अंधी दौड़ में अपनी जीवनी शक्ति को खो देता है l महँगी दवाइयाँ , अच्छे डॉक्टर भी उसका जीवन नहीं बचा पाते l
अधिकाधिक लाभ कमाने की प्रवृति को त्याग कर ' जियो और जीने दो ' के सिद्धांत पर चलकर ही मानवता सुखी हो सकती है l
बीमारी , महामारी न ऊंच - नीच देखती , न जात - पांत , न अमीर - गरीब l एक ओर गरीब व्यक्ति अपनी गरीबी , अभाव , भूख , रहने को घर नहीं , गाँव में अच्छी चिकित्सा सुविधाएँ नहीं और शहरों में व्यवसायिक लूट की वजह से मरता है l तो दूसरी ओर अमीर , धनसम्पन्न व्यक्ति भोग - विलास का जीवन जीने , कामना - वासना की अंधी दौड़ में अपनी जीवनी शक्ति को खो देता है l महँगी दवाइयाँ , अच्छे डॉक्टर भी उसका जीवन नहीं बचा पाते l
अधिकाधिक लाभ कमाने की प्रवृति को त्याग कर ' जियो और जीने दो ' के सिद्धांत पर चलकर ही मानवता सुखी हो सकती है l
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