गीता में भगवान कहते हैं --- मैं तुम्हारे लिए सारी व्यवस्था कर दूंगा , तुम मुझसे अनन्य भाव से जुड़ो तो सही l अनन्य भाव का अर्थ है -- पूरी तरह परमात्मा में घुल जाना l कोई भौतिकवादी लालसा नहीं l हर कर्म में ईश्वर को ही सोचना , समर्पण भाव से ईश्वर के निमित्त कर्म करना l
एक उदाहरण रामचरितमानस में है कि भगवान अपने अनन्य भक्त का किस प्रकार ध्यान रखते हैं ------- अरण्यकाण्ड में अंतिम दोहों में वर्णन आता है कि नारद जी भगवान श्रीराम एवं लक्ष्मण जी को वन में सीता को ढूंढते हुए विरह की स्थिति में देखते हैं l वे भगवान के पास जाकर प्रणाम कर उनसे कहते हैं ---- " आपने अपनी माया से मोहित कर , एक बार मुझे विवाह करने से रोका था l तब मैं विवाह करने को आतुर था l आपने मुझे किस कारण रोका ? "
तब भगवान श्रीराम कहते हैं --- जो समस्त आशा - भरोसा छोड़कर केवल मुझको ही भजते हैं ( नारद जी भगवान के बहुत बड़े भक्त हैं ), मैं सदा उनकी वैसे ही रखवाली करता हूँ , जैसे माता बालक की रक्षा करती है ---- करउँ सदा तिन्ह कै रखवारी l जिमि बालक राखइ महतारी l
लेकिन जब पुत्र सयाना हो जाता है तो उस पर माता प्रेम तो करती है , परन्तु पिछली बात नहीं रहती l
आगे श्रीराम कहते हैं --- "मेरे सेवक को , मेरे भक्त को केवल मेरा ही बल रहता है लेकिन ज्ञानी को अपना बल होता है l भक्त के शत्रुओं को मारने की जिम्मेदारी तो मेरी है , पर अपने बल का मान मानने वाले ज्ञानी के शत्रु का नाश करने की जिम्मेदारी मेरी नहीं है l ऐसा विचार कर बुद्धिमान लोग मुझको ही अनन्य भाव से भजते हैं l वे ज्ञान प्राप्त होने पर भी भक्ति को नहीं छोड़ते l " भगवान अपने भक्तों का योगक्षेम वहां करते हैं l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने कहा है --- ' तुम मेरा काम करो , मेरे विचारों को जन - जन तक
पहुंचाओ , बुरी आदतें सुधार लो , सन्मार्ग पर चलो ,---- मैं तुम्हारा ध्यान रखूँगा l '
एक उदाहरण रामचरितमानस में है कि भगवान अपने अनन्य भक्त का किस प्रकार ध्यान रखते हैं ------- अरण्यकाण्ड में अंतिम दोहों में वर्णन आता है कि नारद जी भगवान श्रीराम एवं लक्ष्मण जी को वन में सीता को ढूंढते हुए विरह की स्थिति में देखते हैं l वे भगवान के पास जाकर प्रणाम कर उनसे कहते हैं ---- " आपने अपनी माया से मोहित कर , एक बार मुझे विवाह करने से रोका था l तब मैं विवाह करने को आतुर था l आपने मुझे किस कारण रोका ? "
तब भगवान श्रीराम कहते हैं --- जो समस्त आशा - भरोसा छोड़कर केवल मुझको ही भजते हैं ( नारद जी भगवान के बहुत बड़े भक्त हैं ), मैं सदा उनकी वैसे ही रखवाली करता हूँ , जैसे माता बालक की रक्षा करती है ---- करउँ सदा तिन्ह कै रखवारी l जिमि बालक राखइ महतारी l
लेकिन जब पुत्र सयाना हो जाता है तो उस पर माता प्रेम तो करती है , परन्तु पिछली बात नहीं रहती l
आगे श्रीराम कहते हैं --- "मेरे सेवक को , मेरे भक्त को केवल मेरा ही बल रहता है लेकिन ज्ञानी को अपना बल होता है l भक्त के शत्रुओं को मारने की जिम्मेदारी तो मेरी है , पर अपने बल का मान मानने वाले ज्ञानी के शत्रु का नाश करने की जिम्मेदारी मेरी नहीं है l ऐसा विचार कर बुद्धिमान लोग मुझको ही अनन्य भाव से भजते हैं l वे ज्ञान प्राप्त होने पर भी भक्ति को नहीं छोड़ते l " भगवान अपने भक्तों का योगक्षेम वहां करते हैं l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने कहा है --- ' तुम मेरा काम करो , मेरे विचारों को जन - जन तक
पहुंचाओ , बुरी आदतें सुधार लो , सन्मार्ग पर चलो ,---- मैं तुम्हारा ध्यान रखूँगा l '
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