19 April 2020

WISDOM ---- अति सर्वत्र वर्जयेत

  हमारे  आचार्य , ऋषियों  आदि  का  कहना  है   कि   किसी  भी  स्थिति  में  अति  नहीं  होनी  चाहिए  l   महात्मा  बुद्ध  ने  कहा  भी  है --- वीणा  के  तार  को  इतना  मत  कसो  कि   वह  टूट  जाए ,  और  इतना  ढीला  भी  मत  छोड़ो   कि   वह  बजना  ही  छोड़  दे   l
  अति  जहाँ  भी  है ,  वह   मनुष्य  के  लिए  मुसीबत  उत्पन्न  करती  है   l   यदि  लालच , तृष्णा   , अहंकार  अति  का  है  तो  ये  दुर्गुण   उस  व्यक्ति  के  हृदय  की  संवेदना  को  सोख  लेते  हैं   , फिर  उसके  अमानुषिक  व्यवहार  से  सारा  समाज  त्रस्त   होने  लगता  है  l
  पूंजीवादी  व्यवस्था  में  अति उत्पादन  की  समस्या  है  l   अनेक  कारण  हैं  जिनकी  वजह  से  अति  उत्पादन  हो  जाता  है  ,  इससे  एक  नई   समस्या   उत्पन्न  होती  है  कि   इसे  खपाएं  कहा  ?    उपभोग  सामग्री  का  अतिउत्पादन  हो  तो  उसे  तो   कहीं  भी  खपाया  जा  सकता  है    लेकिन  यदि    नशीले  मादक  पदार्थ ,   कीटनाशक ,  अस्त्र - शस्त्र ,  हथियार ,  विभिन्न  तरह  की  दवाएं ,  इनके  उपकरण  आदि  का  अतिउत्पादन  हो  तो  उसे    किसी  बाजार  में  खपाना , बेचना  एक  कठिन  समस्या  होती  है  l   यदि  पूंजीपति  में   मानवीयता  नहीं  है  तो  वह  साम , दाम , दंड , भेद  किसी  भी  नीति   से  अपने  माल  को  बेचकर  लाभ  कमा  लेगा  ,  उसे  केवल  अपने  लाभ  की  चिंता  है  ,  लोगों  के  हित    की  परवाह  नहीं  है   l
     इसलिए  ऋषियों  ने  मध्यम   मार्ग  पर  बल  दिया  है  l   अपना  भी  हित   हो  जाये   और  संसार  का  अहित  न  हो  l  ' अति  का  अंत  होता  है  l   इसलिए ' जियो  और  जीने  दो ' l
  व्यवस्था  चाहे  जो  हो --- पूंजीवाद , समाजवाद ,  प्रजातंत्र ,  राजतन्त्र --- यदि   इनमे  मानवता ,  संवेदना ,  करुणा , भाईचारे ,  परहित  आदि  सद्गुणों  का  समावेश  होगा   तभी  इस  धरती  पर  लोग  सुख - शांति  से  जीवन  जी  सकेंगे  l  

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