अमरदास सिख संप्रदाय के तृतीय गुरु थे l उन्होंने अपने अनुयायियों को सामूहिक लंगर में भोजन कराने की प्रथा का सूत्रपात किया , ताकि मनुष्य - मनुष्य के बीच ऊंच - नीच के भेद को मिटाया जा सके l एक बार एक अधिकारी ने आकर सेवकों के माध्यम से अमरदास जी को सूचना भिजवाई कि शहंशाह अकबर आपके दर्शन करना चाहते हैं , भोजन भी यहीं करेंगे l अमरदास जी बोले ---- " यहाँ सभी समान हैं l यदि शहंशाह सामान्य नागरिक की तरह आकर सबके साथ बैठकर लंगर भोजन करने को तैयार हों तो आ सकते हैं l " बादशाह ने वैसा ही किया , तब कहीं गुरु - दर्शन प्राप्त हुए और उनके सत्संग का लाभ मिला l अहंकार के हटने पर ही श्रेष्ठता का सान्निध्य प्राप्त हो सकना संभव हो पाता है l
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