सोलहवीं शताब्दी में जन्में रहीम खानखाना ने बड़ी भक्ति पूर्वक राम कथा को गाया और अपनाया l रहीम मुसलमान थे , परन्तु प्रभु श्रीराम पर उनकी अटल श्रद्धा थी l वह कहा करते थे ---- ' रहिमन धोखे भाव से , मुख तें निकसे राम l पावन पूरन परम गति , कामादिक को धाम l ' उन्होंने स्पष्ट कहा कि संसार सागर से पार उतरने का एकमात्र उपाय प्रभु श्रीराम की शरणागति है l वे कृपामय प्रभु जगत की विषय - वासना से प्राणी को मुक्त कर उसे अपनी भक्ति प्रदान कर निर्भय कर देते हैं l उनका कथन है ---- ' गहि सरनागति राम की , भवसागर की नाव l रहिमन जगत उधार कर , और न कछु उपाय l
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