इस संसार में व्यक्ति को सर्वाधिक आकर्षित करती है ---- सुख की चाह l इस सुख को पाने के लिए वह तरह - तरह के प्रलोभनों में फँसता है , वह सुख की चाह में केवल भ्रमित होता रहता है , लेकिन उसे वास्तविक सुख नहीं मिल पाता l महत्वपूर्ण बात यह है कि व्यक्ति को जो सुख मिला है , वह उसमें खुश नहीं होता , वह चाहता है कि दूसरों के हिस्से का सुख भी उसे ही मिल जाये l दूसरों का सुख उससे सहन नहीं होता और अपने सुखों के खो जाने का भय उसे दिन - रात सताता है l संसार में आज ऐसे ही लोगों की अधिकता है , जिनमे त्याग का भाव नहीं है l पुराणों में कथा है --- महाराज ययाति की l उनकी इच्छाएं कभी पूरी नहीं हुईं l उन्होंने अपने पुत्र - पौत्रों से यौवन की भीख मांगी , हजारों वर्षों तक सुख - भोग भोगने के बाद भी उन्हें तृप्ति नहीं हुई अंत में उन्हें गिरगिट की योनि प्राप्त हुई l हमारे ऋषियों ने सुख - भोग को मर्यादित करने के लिए ही आश्रम - व्यवस्था की , मनुष्यों को त्याग करने और आने वाली पीढ़ियों के लिए स्थान रिक्त करने की सलाह दी l लेकिन संसार में दुर्बुद्धि का ऐसा प्रकोप है कि ज्यों - ज्यों जीवन हाथ से छूटने का समय करीब आता है , व्यक्ति उसे और तेजी से पकड़ना चाहता है और चाहता है कि कितना सुख भोग लें , इस सुख के लिए चाहे संसार को युद्ध के दावानल में ही क्यों न झोंखना पड़े l
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