पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- ' स्वार्थी व अहंकारी व्यक्ति कभी सुखी व संतुष्ट नहीं हो सकता क्योंकि उसके मन में सदैव कुछ पाने की इच्छा बनी ही रहती है l स्वार्थ के साथ अहंकार , ईर्ष्या , द्वेष आदि अवगुण स्वत: ही जुड़ जाते हैं l अहंकार कभी भी थोड़े से संतुष्ट नहीं होता , बल्कि वह तो और अधिक , सबसे अधिक , सर्वश्रेष्ठ की अपेक्षा रखता है l इसी कारण व्यक्ति में ईर्ष्या , द्वेष का उदय होता है , जो दूसरों के शोषण का कारण बनता है और इसी से उत्पन्न होती है भाव शून्यता l आज मनुष्य इसी भावशून्यता की स्थिति में जी रहा है l ' प्रेम , दया , त्याग का स्थान स्वार्थ , अहंकार व ईर्ष्या , द्वेष ने ले लिया है l " आचार्य श्री लिखते हैं --- ' अहंकारी व्यक्ति समाज की उपेक्षा कर अपने लिए सुख के साधन तो जुटा सकता है किन्तु जीवन को सुखी नहीं बना सकता l जीवन में सब कुछ होते हुए भी सुख , शांति व संतुष्टि नहीं होती l '
No comments:
Post a Comment