पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- केवल विचारों पर संयम करना पर्याप्त नहीं है l विचारों के साथ वाणी पर संयम करना अनिवार्य है l वाणी की वाचालता शक्ति के क्षरण के अतिरिक्त संबंधों में कटुता भी पैदा करती है l वाणी के माध्यम से हमारी मानसिक शक्तियों का सर्वाधिक क्षरण होता है l अहंकार , कामुकता , क्रोध , द्वेष से लेकर तृष्णा , वासना की अभिव्यक्ति का माध्यम भी वाणी बन जाती है l अंदर के कुत्सित उद्वेग वाणी के माध्यम से शब्दों का आकार पाते हैं l इसलिए वाणी की शक्ति का संरक्षण , संयम व सदुपयोग भी शक्ति संरक्षण का एक महत्वपूर्ण आधार कहा जा सकता है l
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