रामकृष्ण परमहंस काली के उपासक थे l अनेक दिन बीत गए , वे रोज रोते l घंटों पूजा करते l एक दिन क्रोध में आकर बोले ---- " माँ ! इतने दिन से बुला रहा हूँ l तू आती ही नहीं l या तो तू प्रकट हो या मैं अप्रकट होता हूँ l या तो तू रहे या मैं मिटता हूँ l " तलवार हाथ में ले ली l गरदन पर चलाने वाले ही थे कि माँ प्रकट हो गईं l मूर्ति के स्थान पर साक्षात् माँ विराजमान थी l हँसती -- खिलखिलाती सौंदर्य की प्रतिमूर्ति माँ काली l तलवार फर्श पर गिर गई , वे छह दिन तक बेहोश पड़े रहे l सभी भक्त परेशान l छह दिन बाद जब होश आया तो पहली बात जो उनने कही , वह यही कि इतने दिन तो माँ तूने बेहोश रखा , अब जब छह दिन होश में रहा तो फिर बेहोशी में क्यों भेजती है ! तू मुझे फिर से बुला ले l जा मत , रुक जा l यह उनकी पहली समाधि थी l
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