हमारे द्वारा किए जाने वाले कार्य, हमारी हृदय की भावना , हमारे विचार और हमारी रूचि को प्रकट करते हैं l प्रकृति और मनुष्यों में निरंतर एक संवाद होता रहता है l हम अपने आचरण, अपनी भावनाओं के द्वारा प्रकृति को सन्देश देते हैं कि हमारी पसंद क्या है , हम क्या चाहते हैं ? यदि अधिकांश लोग जाति , धर्म , ऊंच - नीच , सम्प्रदाय आदि के आधार पर दंगे - फसाद करते हैं , तो प्रकृति को यही संदेश जाता है कि मनुष्य को हाय - हत्या , लड़ाई - झगड़ा , युद्ध , नाश जैसी नकारात्मकता ही पसंद है l प्रकृति अपने तरीके से मानव को समझाने का भी बहुत प्रयास करती है लेकिन ईर्ष्या , द्वेष , लोभ , अहंकार जैसी मानसिक विकृतियों से ग्रस्त मानव कुछ समझना चाहता ही नहीं है --' जब नाश मनुज पर छाता है , पहले विवेक मर जाता है l ' तरीका अलग - अलग है -- मनुष्य अपनी दुर्बुद्धि द्वारा अपना ही नाश करता है और प्रकृति अपने प्रकोप से भूकंप , बाढ़ , सुनामी आदि से तबाही ला देती है l भौतिक प्रगति तो हमने बहुत की , लेकिन जीवन जीना नहीं सीखा l बड़ी मुश्किल से मनुष्य जन्म मिला , कुछ सकारात्मक करने के बजाय लड़ते - झगड़ते , बीमारी , महामारी झेलते , रोते - पीटते संसार से चले जाते हैं l बहुमूल्य जीवन का कौड़ी बराबर भी मूल्य नहीं रह जाता l
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