श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- मैं दमन करने की अमोघ शक्ति हूँ l मुझसे कोई बच नहीं सकता l भगवान कहते हैं ---दमन पाशविक भी है और ईश्वरीय विभूति भी है l भगवान कहते हैं --- दमन यदि विवेकहीन , औचित्यहीन व नीतिहीन हो तो यह आसुरी एवं पाशविकता का परिचय प्रदान करता है l घोर संकट का कारण बन जाता है तथा मनुष्य , समाज एवं सृष्टि को भारी क्षति पहुंचाता है l भगवान आगे कहते हैं --- यदि अन्याय , अनीति , अत्याचार , दुराचार , शोषण , भ्रष्टाचार का दमन किया जाता है तो दमन ईश्वरीय विभूति के रूप में अलंकृत होता है l जो इसे करने का साहस दिखाता है , दंड उसके हाथों में ईश्वरीय शक्ति के रूप में शोभित होता है l भगवान शिव का त्रिशूल , महाकाली का खड्ग , भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र , श्रीराम का धनुष , इंद्र का वज्र , परशुराम का परशु , यमराज का पाश और हनुमान जी की गदा ऐसे ही ईश्वरत्व को प्रकट करते है l शक्ति जब असुरों के हाथ में आ जाती है तो वे उसका दुरूपयोग कर अत्याचार और अन्याय करते हैं लेकिन वही शक्ति जब देवताओं के हाथ में आ जाती है तो वे उसका सदुपयोग करते हैं , लोक कल्याण के कार्य करते हैं , प्रजा को सुख - शांति मिलती है l
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