महाराज ययाति को भोगों को भोगते हुए जीवन के सौ वर्ष कब पूरे हो गए , पता भी नहीं चला l यमदेव उन्हें लेने आ गए l उन्होंने यमदेव से प्रार्थना की ---- " मेरी सभी इच्छाएं अधूरी हैं , कृपया मुझे जीवनदान देने की कृपा करें " यमदेव बोले --- " यदि आपके सौ पुत्रों में से कोई एक भी पुत्र अपना यौवन आपको दे दे औ आपकी इच्छा पूर्ण हो सकती है l " कामग्रस्त ययाति ने अपने पुत्रों को बुलाकर उनसे यौवन की भीख मांगी l सभी ने मन कर दिया , केवल एक पुत्र तैयार हो गया l यमदेव को इस पर आश्चर्य हुआ और उन्होंने उससे ऐसा करने के पीछे का कारण पूछा l वह बोला ----- " जब सौ वर्षों के भोग से भी पिताजी की तृप्ति नहीं हो सकी तो मेरी कैसे होगी ? भोगों में समय गंवाना व्यर्थ है l " यमदेव ने प्रसन्न होकर उसे जीवनमुक्ति का आशीर्वाद दिया l सौ वर्ष पूर्ण हो जाने पर फिर ययाति के सामने यम प्रकट हुए तो ययाति ने पुन: वही याचना की l इन सौ वर्षों में उनके द्वारा पैदा हुए पुत्रों में से एक ने अपनी आयु उन्हें दे दी l इस तरह ययाति को दस बार जीवनदान मिला , वे एक हजार वर्ष तक जिए और विलास में रत रहे l अंतत: उन्हें पश्चाताप हुआ और वे समझ पाए कि भोगों की तृप्ति कभी नहीं होती l उन्हें नरक में घोर कष्ट भोगना पड़ा l ययाति की ये कथा ढलती उम्र के लोगों के लिए एक प्रेरणा है l
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