श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- अनेक अस्त्र - शस्त्रों में मैं वज्र हूँ l पुरातन काल में एक युग ऐसा आया जब पाताल के साथ धरती और स्वर्ग भी असुरों के आधीन हो गए l असुर बहुत प्रबल हो गए l देवों के किसी भी अस्त्र का उन पर कोई प्रभाव नहीं होता था l थक - हारकर सभी देवता ब्रह्मा जी और देवगुरु बृहस्पति के साथ भगवान नारायण के पास गए और अपनी समस्या कही l भगवान नारायण बोले ---- " उपाय तो है ---- यदि सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ तपस्वी की अस्थियों से हथियार बनाया जाए तो उस से आसुरी संकट समाप्त हो जायेगा l " यह उपाय अति विलक्षण था , ब्रह्म देव ने पूछा --- " भगवन ! ऐसा महान तपस्वी कौन है ? " उत्तर में भगवान विष्णु ने कहा ---- " ऐसे तपस्वी केवल दधीचि हैं l " देवता पूछने लगे कि क्या वे अपनी अस्थियाँ देंगे l इस पर भगवान नारायण बोले --- " वे भगवान शिव के शिष्य हैं l लोकहित के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं l " हुआ भी यही l लोकहित के लिए उन्होंने योगबल से अपने प्राण त्याग दिए और अपनी अस्थियाँ दान में दे दीं l उनसे वज्र बना और असुर पराजित हुए l वह अमोघ वज्र भगवान का अपना स्वरुप ही है l
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