11 November 2020

WISDOM -----

   श्रीमद्भगवद्गीता   में  भगवान  कहते  हैं   --- अनेक  अस्त्र - शस्त्रों  में  मैं  वज्र  हूँ  l   पुरातन  काल  में  एक  युग  ऐसा  आया   जब  पाताल   के  साथ   धरती  और  स्वर्ग  भी    असुरों  के  आधीन  हो  गए   l   असुर  बहुत  प्रबल  हो  गए  l   देवों   के  किसी  भी  अस्त्र  का  उन  पर   कोई  प्रभाव  नहीं  होता  था  l    थक - हारकर   सभी  देवता   ब्रह्मा जी  और  देवगुरु    बृहस्पति   के  साथ  भगवान  नारायण  के  पास  गए   और  अपनी  समस्या  कही  l   भगवान  नारायण  बोले ---- "  उपाय  तो  है  ---- यदि  सृष्टि  के  सर्वश्रेष्ठ  तपस्वी   की  अस्थियों  से   हथियार  बनाया  जाए   तो  उस  से  आसुरी  संकट   समाप्त  हो  जायेगा  l  "  यह  उपाय  अति  विलक्षण  था  ,  ब्रह्म देव  ने  पूछा  --- " भगवन  !  ऐसा  महान  तपस्वी  कौन  है   ? "   उत्तर  में  भगवान  विष्णु  ने  कहा ----  " ऐसे  तपस्वी  केवल  दधीचि  हैं  l  "  देवता  पूछने  लगे   कि   क्या  वे  अपनी  अस्थियाँ   देंगे   l   इस  पर  भगवान  नारायण  बोले --- "   वे  भगवान  शिव  के  शिष्य  हैं  l   लोकहित  के  लिए  वे  कुछ  भी  कर  सकते  हैं  l  "   हुआ  भी  यही  l   लोकहित  के  लिए  उन्होंने  योगबल  से  अपने  प्राण  त्याग  दिए   और  अपनी  अस्थियाँ   दान  में  दे  दीं   l   उनसे  वज्र  बना   और  असुर  पराजित  हुए  l   वह  अमोघ  वज्र  भगवान  का  अपना  स्वरुप  ही  है   l 

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