एक बार महामना पं. मदनमोहन मालवीय जी के पास एक धनी सेठ आए l उनके बारे में प्रसिद्ध था कि वे अपना धन भिखारियों में बाँट सकते हैं , पुण्यार्जन की दृष्टि से चींटियों को दाना खिलाने के लिए कर्मचारियों को ढेरों की संख्या में लगा सकते हैं , पर लोकमंगल के लिए उन्होंने न कभी कुछ खर्च किया है , और न करेंगे l मालवीय जी उन दिनों काशी हिंदू विश्वविद्दालय का निर्माण करा रहे थे l संयोग से जिस लड़के से सेठ जी की लड़की का विवाह था , वह उनका विद्दार्थी भी था l उन्होंने कहा आप विवाह में जो राशि खर्च कर रहे हैं , मैंने सुना है वह लाखों में है l उसके बदले आप लड़के के नाम कुछ राशि जमा कर दें व उसे स्वावलंबी बनने दें l वह मेहनती है , अपना संसार खुद बना लेगा l पर जो राशि आप उस प्रदर्शन में खर्च करेंगे उससे तो किसी का लाभ नहीं होगा , आपकी कन्या के लिए विवाहोपरांत कष्ट का कारण अवश्य बन सकता है l इस राशि को आप हमें दहेज़ में दे दें ताकि उससे हिंदू विश्वविद्दालय का बाकी काम पूरा हो सके l लड़के का गुरु होने के नाते मैं यह दक्षिणा लोकमंगल के लिए आपसे मांग रहा हूँ l उनका कहना भर था और उस कंजूस सेठ का बदलना l न केवल आदर्श विवाह उन्होंने किया , कई भवन विश्वविद्दालय के लिए बनवा भी दिए l महामना की साख, उनकी सच्चाई और कार्य के प्रति समर्पण और ईमानदारी ने यह चमत्कार कर दिया l
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