भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि गुण मानवीय व्यक्तित्व का आधार है l वे कहते हैं व्यक्तियों में अंतर मात्र गुणात्मक है , उनके अंदर उपस्थित गुणों के प्रभुत्व का है l जिस गुण का प्रभाव बढ़ जाये , व्यक्ति के व्यक्तित्व की संरचना वैसी ही हो जाएगी l एक व्यक्ति जीवन भर एक ही व्यक्तित्व नहीं रहता है l तभी तो अनेक हत्याएं करने के बाद भी अंगुलिमाल भिक्षु बन जाता है और वर्षों तपस्या करने के बाद भी रावण असुर बन जाता है l भगवान कहते हैं जिस गुण का आधिक्य हुआ , वह गुण , अन्य गुणों को दबाकर आगे बढ़ता है l
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