रामायण में एक चौपाई है --- 'उधरहिं अंत न होइ निबाहु l कालनेमि जिमि रावन राहू ll अर्थात जब धर्म का ढोंग करने वाले अधर्मीजनों की पोल खुलती है , तो उनका कहीं निर्वाह नहीं होता , उन्हें कहीं ठिकाना नहीं मिलता l उनका वही हाल होता है , जो संन्यासी बनकर भिक्षा मांगने वाले रावण का हुआ l वह अपने परिवार सहित दुर्गति को प्राप्त हुआ l जो हाल साधु बनकर रामनाम जप का आडम्बर करने वाले कालनेमि असुर का हुआ l वह महावीर हनुमान के हाथों मारा गया l और जो हाल राहु का हुआ l देवता बनने का स्वांग भरने वाले इस असुर को अपना सिर कटवाना पड़ा l ढोंगियों का ऐसा हाल होता रहेगा l आचार्य श्री लिखते हैं धर्म की सम्पूर्ण रचना ' तमसो मा ज्योतिर्गमय ' का महान उद्देश्य लेकर विकसित हुई है l धर्म की वैज्ञानिक दृष्टि अति आवश्यक है l
No comments:
Post a Comment