इतिहास में ऐसे बहुत कम उदाहरण हैं , जहाँ किसी ने भगवान को इस तरह अपने जीवन में घोल लिया हो , जैसे वे कभी उनसे पृथक ही न हुए हों l मीरा की भक्ति अद्वितीय थी l मीरा का व्यक्तित्व ऐसा था जिसने अपने जीवन में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति में श्रीकृष्ण को जीवंत कर लिया था l उन्होंने स्थूल दृष्टि से न तो कभी भगवान श्रीकृष्ण को देखा , न उनकी वाणी सुनी , न उनका सान्निध्य पाया , लेकिन फिर भी अपने मन में श्रीकृष्ण की मूरत को ऐसा बैठाया कि भगवान को हर पल उनके साथ रहना पड़ा l उनकी सुरक्षा का पूरा दायित्व भी भगवान श्रीकृष्ण ने अपने ऊपर ले लिया था l इसी कारण विष का प्याला , साँप की पिटारी आदि भी मीरा के प्राण न ले सके l मीरा को जिसने जन्म दिया , वह माँ उसे बचपन में ही छोड़कर चली गई , मीरा की जिससे शादी हुई वह कुंवर भोजराज भी ज्यादा दिन जीवित न रहे l उनके बाबा राव दूदा , जिन्हे वह अपना बहुत मानती थीं , पिता रतन सिंह , सह उम्र का भाई --ताऊ जी का बीटा जयमल --- एक - एक कर के सब उन्हें छोड़कर चले गए और इस संसार में ऐसे लोगों से उनका पाला पड़ा , जो उनका अपमान करते , उन्हें तिरस्कृत करते और यहाँ तक कि उनके प्राण लेने के लिए तरीके सोचते और उसके लिए प्रयास करते l ऐसे लोगों के बीच रहकर भी मीरा के मन में कभी द्वेष , घृणा , छल , कपट , झूठ और बदला लेने का भाव नहीं आया l वे तो सदैव ही प्रेम और भक्ति रस में डूबी रहीं और सब कुछ भगवान पर छोड़कर निश्चिंतता व निर्भीकता के साथ रहीं l वे केवल कृष्णोपासिका और कृष्णप्रेमिका नहीं थीं , बल्कि उन्होंने अपने भक्तिरस से अनेकों हृदयों का मैल धो दिया और बदले की आग में डूबे हुए , युद्ध , लूटमार , छल , कपट के साये में जीने वाले राजवंश और समाज को भक्ति का पाठ पढ़ाया l
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