6 December 2020

WISDOM------

 इतिहास  में  ऐसे  बहुत  कम  उदाहरण   हैं   , जहाँ    किसी  ने  भगवान  को  इस  तरह  अपने  जीवन  में  घोल  लिया  हो  ,  जैसे   वे  कभी  उनसे  पृथक  ही  न  हुए  हों  l  मीरा  की  भक्ति  अद्वितीय  थी   l   मीरा  का  व्यक्तित्व  ऐसा  था   जिसने  अपने  जीवन  में   भगवान  श्रीकृष्ण   की  मूर्ति  में   श्रीकृष्ण  को  जीवंत   कर  लिया  था   l   उन्होंने  स्थूल  दृष्टि  से   न  तो  कभी   भगवान  श्रीकृष्ण  को  देखा  ,  न  उनकी  वाणी  सुनी  ,   न उनका  सान्निध्य  पाया ,  लेकिन   फिर  भी  अपने  मन  में   श्रीकृष्ण  की  मूरत  को  ऐसा  बैठाया   कि   भगवान  को  हर  पल   उनके  साथ  रहना  पड़ा  l   उनकी  सुरक्षा  का  पूरा  दायित्व  भी  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  अपने  ऊपर  ले  लिया  था  l   इसी  कारण  विष   का प्याला  ,  साँप   की  पिटारी   आदि  भी    मीरा  के    प्राण   न  ले  सके   l   मीरा  को  जिसने  जन्म  दिया  ,  वह  माँ  उसे  बचपन  में  ही  छोड़कर  चली  गई ,  मीरा  की  जिससे  शादी  हुई  वह  कुंवर  भोजराज  भी   ज्यादा  दिन  जीवित  न  रहे  l   उनके  बाबा  राव  दूदा ,  जिन्हे  वह  अपना  बहुत  मानती  थीं , पिता  रतन सिंह  ,  सह उम्र  का  भाई  --ताऊ जी  का  बीटा  जयमल  --- एक - एक  कर  के  सब  उन्हें  छोड़कर  चले  गए   और  इस  संसार  में  ऐसे  लोगों  से  उनका  पाला   पड़ा  ,  जो  उनका  अपमान  करते ,  उन्हें  तिरस्कृत  करते   और  यहाँ  तक  कि   उनके  प्राण  लेने  के  लिए   तरीके  सोचते  और  उसके  लिए  प्रयास  करते  l   ऐसे  लोगों  के  बीच  रहकर  भी   मीरा  के  मन  में  कभी  द्वेष , घृणा  ,  छल , कपट  ,  झूठ   और  बदला  लेने  का  भाव  नहीं  आया   l    वे तो  सदैव  ही  प्रेम  और  भक्ति  रस   में  डूबी  रहीं   और  सब  कुछ  भगवान  पर  छोड़कर   निश्चिंतता   व   निर्भीकता  के  साथ  रहीं   l   वे  केवल   कृष्णोपासिका  और  कृष्णप्रेमिका   नहीं  थीं  ,  बल्कि  उन्होंने  अपने  भक्तिरस  से   अनेकों  हृदयों  का   मैल   धो  दिया   और  बदले  की  आग  में  डूबे   हुए  ,  युद्ध , लूटमार , छल , कपट  के  साये  में   जीने  वाले  राजवंश   और  समाज  को   भक्ति का  पाठ  पढ़ाया   l 

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