भरत 11 वर्ष के सुकुमार बालक थे l उन्हें शिक्षा - दीक्षा उनकी माँ शकुंतला ने ही दी थी l माँ ने भरत को निरंतर साहसी बनने , प्राणवान - यशस्वी बनने की प्रेरणा दी l बालक भरत को माँ से शिक्षा मिली थी कि किसी निरपराध प्राणी को कभी पीड़ा नहीं पहुँचाना l बालक भरत जंगल में विचरण कर रहे थे उन्हें सिंहशावकों का क्रंदन सुनाई पड़ा l वे उस दिशा में पहुंचे तो देखा कि पांच भालुओं ने दो सिंहशावकों को घेर रखा है , जो अपने माता - पिता से बिछड़ गए थे l जैसे ही एक भालू झपटा , एक तीर सनसनाता हुआ आया और उनके पास के शिलाखंड को तोड़ गया l यह एक चेतावनी थी l सभी की निगाहें भारत पर पड़ीं l बिना विलम्ब वे सभी भरत पर टूट पड़े l भारत ने खड्ग के प्रहार से दो भालुओं के शीश धड़ से अलग कर दिए l शेष तीन डर कर भाग गए l दोनों सिंहशावक भरत के चरणों में लोट गए l भरत ने दोनों बच्चों को गोद में उठाया , अपने हृदय से लगाया और कहा --- " चलो आज तुम्हे हमारी माँ , हमारी गुरु के दर्शन कराएं l " जैसे ही पीछे मुड़े शावकों के माता - पिता सिंह और सिंहनी खड़े थे , उनकी आँखों में कृतज्ञता के भाव थे l वे भरत को अपने नन्हे बालकों सहित आश्रम तक छोड़ने आये l भरत को खेलने के लिए दो मित्र मिल गए l सिंह के दांत गिनने वाले इसी भरत के नाम पर हमारा राष्ट्र भारतवर्ष कहलाता है l
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