' गुलामी ' एक मानसिकता है l एक निर्धन व्यक्ति जिसके पास कुछ भी खोने को नहीं है , वह किसी का गुलाम नहीं होता l उसे तो केवल अपने और अपने परिवार के भरण - पोषण की चिंता होती है l इसके लिए वह मेहनत , मजदूरी सब कुछ करने को तैयार होता है l फिर पेट की आग और परिवार की जरुरत उससे जो कुछ भी करा लें ! जिसके पास पद - प्रतिष्ठा , धन - वैभव सब कुछ है और उन सबसे बढ़कर तृष्णा है , ऐसा व्यक्ति सबसे ज्यादा भयभीत होता है l वह हमेशा एक अनजाने भय से घिरा रहता है कि यदि यह सब नहीं रहा तो उसका क्या होगा ? उसका अहंकार , उसकी प्रतिष्ठा सब कुछ धराशायी हो जायेगा l इसी भय के कारण वह अपने से शक्तिशाली की गुलामी करता है , और वह शक्तिशाली अपने से भी ज्यादा शक्तिशाली की गुलामी करता है ------ यह क्रम चलता रहता है l वैश्वीकरण ने इस श्रंखला को बहुत बढ़ा दिया है l अब सब एक नाव पर सवार हैं l मनुष्य की इस तृष्णा की वजह से ही संसार में अशांति है l
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