हमारे देश में जाति -भेद युगों से रहा है l इस बुराई के कारण समाज ने अपना ही नुकसान किया है l जो गुणों में और अपने कर्म से श्रेष्ठ थे वे अपनी श्रेष्ठता का प्रमाण इस संसार को देकर और अपना नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखाकर चले गए , यह समाज ही उनकी योग्यता और श्रेष्ठता से लाभ उठाने से वंचित रह गया l भगवान परशुराम ने केवल ब्राह्मण बालकों को ही धर्नुविद्या सिखाने की प्रतिज्ञा की हुई थी l कर्ण बहुत वीर था लेकिन सब लोग उसे ' सूतपुत्र ' कहकर अपमानित करते थे , वह भी धनुर्विद्या सीखना चाहता था , विशेष रूप से ब्रह्मास्त्र का ज्ञान चाहता था , इस कारण उसने ब्राह्मण का वेश बनाकर परशुराम से धर्नुविद्या सीखनी आरम्भ कर दी l परशुराम जी जितना सिखाते , कर्ण उसका अभ्यास बहुत परिश्रम और पूर्ण लगन से करता l कर्ण , परशुराम जी के स्नान हेतु उबटन और उत्तरीय वस्त्र लेकर उनके पीछे जाया करता था l एक दिन परशुराम जी स्नान करने निकले तो उन्होंने कर्ण की परीक्षा लेनी चाही l उनके मार्ग में फूलों से लदा एक वृक्ष था l उन्होंने एक ही बाण से उस वृक्ष के सभी फूलों को आधा - आधा काटकर पृथ्वी को पाट दिया और आगे बढ़ गए l कर्ण पीछे से आते हुए जब वहां पहुंचा तो वह अपने गुरुदेव की मंशा को समझ गया , परन्तु उसके हाथ में उबटन का कटोरा था जिसे जमीन पर नहीं रखा जा सकता था l ऐसे में वह बाण कैसे चलाए ? तो उसने कटोरे को आसमान में उछाला और जितनी देर कटोरा आसमान में रहा , उतनी देर में उसने शर संधान कर के शेष आधे कटे फूलों को पूरी तरह धरती पर पाट दिया l लौटने पर परशुरामजी ने यह दृश्य देखा तो अपने शिष्य के कौशल पर बहुत प्रसन्न हुए l वे कर्ण को चाहते भी थे , उस दिन दोपहर को कर्ण की जंघा पर सिर रखकर सो रहे थे कि एक कीट जमीन से आ निकला और कर्ण की जंघा पर बैठकर उसे काटने लगा l कर्ण की जंघा से लहू बहने लगा l गुरुदेव की नींद न टूट जाये इसलिए कर्ण उस पीड़ा को सहता रहा और अपने पाँव को टस - से - मस नहीं किया l रक्त बहते - बहते जब परशुराम जी के शरीर और कान से स्पर्श किया तो वे हड़बड़ा कर उठ बैठे l कर्ण की जंघा से इतना रक्त बहते देख और इस असह्य पीड़ा को उसे धैर्य और शांति के साथ सहते देख उन्हें शक हुआ , उन्होंने कहा --- कर्ण तुम ब्राह्मण पुत्र नहीं हो ! सच बताओ तुम कौन हो ? तब कर्ण ने उनको सच बता दिया कि वह ' सूतपुत्र ' है l तब परशुराम जी को बहुत क्रोध आया लेकिन वो कर्ण के सेवाभाव से प्रसन्न भी थे l उन्होंने कहा --- कर्ण ! धर्नुविद्या में तुम पारंगत हो चुके हो , यह ज्ञान तो तुम्हारे पास रहेगा लेकिन तुमने गुरु से असत्य बोलकर जो ' ब्रह्मास्त्र ' की विद्या सीखी है , उसे ऐन वक्त पर जब तुम्हे उसकी जरुरत होगी , तुम भूल जाओगे l कर्ण दुःखी मन से वापस आ गया l महाभारत में जब अर्जुन के साथ उसका युद्ध हो रहा था तब कर्ण के रथ का पहिया कीचड़ में धंस गया तब ब्रह्मास्त्र चलाकर वह बच सकता था लेकिन गुरु का श्राप फलित हुआ और बहुत याद करने पर भी उसे ब्रह्मास्त्र का ज्ञान याद नहीं आया और अर्जुन के हाथों उसका अंत हुआ l
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