29 December 2020

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष   हर  मनुष्य  की  प्रकृति  में  बड़ी  गहराई   से  अपनी  जड़ें  जमाए   बैठे  हैं    और  हर  युग  में  उनका  रूप  देखने  को  मिलता  है  ll   त्रेतायुग  में   इनका  स्वरुप  दुर्बल  और  कमजोर  था   लेकिन  वर्तमान  समय  में   इनका  रूप   अत्यंत भयावह ,  भीषण  एवं  विकृत  हो  चुका  है   l    रामायण   हो  या  महाभारत    उनमे  ऐसे  अनेक  पात्र  मिल  जायेंगे  जिनमे  ये  मनोविकार    आश्रय  पा  रहे  थे   ------- राजा  दशरथ  महाप्रतापी   और  धर्मपरायण  राजा  थे  ,  परन्तु  वे  महारानी  कैकेयी  के  सौंदर्य  पर  मुग्ध  थे ,   और  अपने  पुत्र  राम  के  अतिशय  मोह  में  थे  l    मंथरा   में  ईर्ष्या  का  दुर्गुण  अपने  चरम  पर  था   l   वह  सदैव  भगवान  राम  से  ईर्ष्या  करती  थी  और  भरत   को  अधिक  महत्व   देती  थी   l  महारानी  कैकेयी  राम  पर   अधिक  वात्सल्य  लुटाती  थीं  ,  परन्तु  क्रोध ,  अहंकार  और  कुसंग   ऐसे महविष    हैं   जो  पवित्र  दिव्य  प्रेम  पर  भी  ग्रहण  लगा  देते  हैं  l  सबसे  अधिक  घातक   था ---  मंथरा     जैसी  निकृष्ट  दासी  का  कुसंग  l   इसी  कुसंग  ने   महारानी  कैकेयी  के  अहंकार  व  क्रोध  को   इतना  भड़का  दिया  कि   वे  राजा  दशरथ  से  राम  को  वनवास  और  भारत  को  राजगद्दी  मांग  बैठीं  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- प्रकृति  सत्पात्रों   का  चयन   श्रेष्ठता  और  सृजन  के  लिए  करती  है    l   कैकेयी  ने  वरदान  माँगा  ,  इसी  वजह   से भगवान  राम  ने  वन  में  रहकर  रावण  आदि  असुरों  का  विनाश  किया  और  रामराज्य  की  स्थापना  की  l   आचार्य श्री  कहते  हैं --- जिसकी  चेतना  जितनी  परिष्कृत  होगी   उसमे  इन  मनोविकार  की  जड़ें  उतनी  कमजोर  होगी   l   इस   युग  की  सबसे  बड़ी  समस्या  यह  है  कि   लोगों  की  चेतना  मूर्च्छित  है  इसलिए   ये  मनोविकार  और  आसुरी  प्रबृति  का  भयावह  रूप  सामने  है   l 

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