खलीफा अली युद्ध के मैदान में लड़ रहे थे l वर्षों से युद्ध का सिलसिला चल रहा था l एक पल ऐसा आया , जब उन्होंने दुश्मन को नीचे गिरा दिया और उसकी छाती पर बैठ गए l भाला उठाकर उसे मारने ही वाले थे कि उस नीचे पड़े दुश्मन ने उन पर थूक दिया l खलीफा ने थूक पोंछा और भाला , जो दुश्मन के सीने से पार होने ही वाला था , उसे हटाकर एक तरफ रख दिया और उस आदमी से जो उनका दुश्मन था , कहा ---- " हम कल फिर लड़ेंगे l " दुश्मन बोला ---- " तुम मौका चूक गए l हो सकता है , कल तुम नीचे हो और मैं भाला लेकर तुम्हारे ऊपर l जब मारना ही था तो मार देते l मैं तुम्हारी जगह होता तो यह मौका नहीं चूकता l " खलीफा बोले ----- " मुहम्मद का फरमान है कि कभी हिंसा भी करो तो क्रोध में मत करो l अभी तक मैं शांति से लड़ रहा था l तुमने मेरे ऊपर थूक दिया l थूक कर क्रोध की लपट पैदा कर दी l इसलिए अब नहीं मारूंगा l आज की लड़ाई सिद्धांत की लड़ाई नहीं हुई l " अगले दिन वह शत्रु आया और उसने खलीफा के पैर पकड़ लिए l उसने कहा ---- " मैंने सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी आदमी हो सकता है --- कभी छाती पर आया भाला रुक भी सकता है ! मुझे माफ कर दो ! और लड़ाई समाप्त हो गई l
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