' दुःख में सुमिरन सब करें , सुख में करे न कोय l जो सुख में सुमिरन करे , दुःख काहे को होय l श्रीमद् भगवद्गीता की शिक्षाएं हमें जीवन जीना सिखाती हैं l गीता में भगवान कहते हैं ---- 'शुभ और अशुभ दोनों ही फल मनुष्य के लिए बाधक हैं l शुभ कर्मों का फल भोगते - भोगते मनुष्य को कर्तापन का अभिमान हो जाता है l जब मनुष्य का समय अच्छा होता है तब हर तरफ उसकी जय - जयकार होती है इस कारण उसका अहंकार और ऐश्वर्य सिर चढ़कर बोलने लगता है l लेकिन जब अशुभ फल पैदा होता है , बुरा वक्त आता है तब हर जगह विपदा ही विपदा नजर आती है , अपमान और षड्यंत्रों की श्रंखला शुरू हो जाती है l इसलिए गीता में भगवान हमें समझाते हैं और कहते हैं --- शुभ के क्षणों में अशुभ के लिए तैयार रहना चाहिए l सुख के क्षणों को योगमय बना लो l सबको साझीदार बना कर पुण्य बांटो l शुभ कर्म करो l शुभ कर्म का मतलब केवल कर्मकांड करना नहीं है l शुभ कर्म अर्थात परमार्थ करना l दूसरों को ऊँचा उठाने के लिए , उनकी पीड़ा दूर करने के लिए कार्य करना l सुख में कभी अहंकार न करे l जब जीवन में दुःख आये तो विचलित न हो क्योंकि परमात्मा सबकी परीक्षा दुःखों के माध्यम से लेता है l दुःख को तप बना ले l
No comments:
Post a Comment