9 December 2020

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' समाज  में  छाए   हुए  अनाचार  , असंतोष   और  दुष्प्रवृतियों  का  एकमात्र  कारण  है  कि   जनसाधारण  की  आत्मचेतना  मूर्च्छित  हो  गई  है   l   चिंतन   और  चरित्र  यदि  निम्न  स्तर  का  है    तो  उसका  प्रतिफल  भी   दुःखद , संकटग्रस्त     एवं    विनाशकारी  होगा  l    आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- ' संसार  में  बुराई  और  भलाई   सभी  कुछ  है   , पर  हम  उन्ही  तत्वों  को  आकर्षित  और  एकत्रित  करते  हैं   जिस  प्रकार  की  हमारी  मनोदशा  होती  है  l  यदि  हम  विवेकशील  हैं  ,  हमारी  रूचि  परिमार्जित  है   तो  संसार  में  जो  कुछ   श्रेष्ठ है   ,  हम  उसे  ही   पकड़ने  का   प्रयत्न करेंगे   l   किन्तु  श्रेष्ठता  का  अनुकरण  कठिन  होता  है   l   सुगंध  की  अपेक्षा  दुर्गन्ध  का  विस्तार  अधिक  होता  है   l    एक   नशेड़ी ,  जुआरी  ,  दुर्व्यसनी ,  कुकर्मी    अनेकों  संगी - साथी  बना  सकने  में  सहज  सफल  हो  जाता  है   l   '  आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं  ---- गीता  पढ़कर  उतने  आत्मज्ञानी  नहीं   बने   जितने  कि   दूषित  साहित्य ,  अश्लील  दृश्य ,  अभिनय  से  प्रभावित  होकर    कामुक  अनाचार  अपनाने  में  प्रवृत  हुए   l   कुकुरमुत्तों  की  फसल    और  मक्खी - मच्छरों  का  परिवार  भी  बड़ी  तेजी  से  बढ़ता  है     पर  हाथी  की  वंश  वृद्धि  अत्यंत  धीमी  गति  से  होती  है   l        भौतिक  प्रगति  के  साथ    चेतना  का  स्तर  ऊँचा  हो  ,  यही  सच्ची  प्रगतिशीलता  है   l                                 

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