पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' भक्ति किसी बड़े एवं श्रेष्ठतम तांत्रिक अनुष्ठान से भी बढ़कर होती है l भक्त की सुरक्षा एवं संरक्षण का भार भगवान स्वयं उठाते हैं l तंत्र चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो , वह भक्ति और भक्त से सदैव कमजोर होता है l ' एक प्रसंग लिखा है ----- जगद्गुरु शंकराचार्य का कर्मभोग समाप्त होने को आया था और उन्होंने शरीर त्यागने का मन बना लिया था l इसी दौरान एक कापालिक क्रकच ने उन पर भीषण तंत्र का प्रयोग कर दिया l इसके प्रभाव से उन्हें भगंदर हो गया और अंत में उन्होंने अपनी देह को त्याग दिया l देह को यहाँ पर तंत्र लगा तो , परन्तु ऐसा विधान ही था l परन्तु कापालिक को अपने इस दुष्कर्म का भयंकर परिणाम भोगना पड़ा l सबसे पहले कापालिक की आराध्या अवं इष्ट भगवती उससे अति क्रुद्ध हुईं और कहा ---' तूने शिव के अंशावतार मेरे ही पुत्र पर अत्याचार किया है l इसके प्रायश्चित के लिए तुझे अपनी भैरवी की बलि देनी पड़ेगी l ' कापालिक भैरवी से अति प्रेम करता था , परन्तु उसे उसको मारना पड़ा l उसको मारने के बाद वह विक्षिप्त हो गया और अपना ही गला काट दिया l तांत्रिक अपनी ही विद्या का दुरूपयोग करते हैं , वे अपनी ही विद्या के अपराधी होते हैं , यही वजह है कि अधिकांश तांत्रिकों का अंत अत्यंत भयानक होता है l
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