कलियुग का एक बहुत बड़ा लक्षण है कि इस युग में मनुष्यों पर दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है , वे जानबूझकर वे सारे काम करते हैं जिससे उन्हें ही नुकसान हो और प्रत्येक व्यक्ति की हानि माने सम्पूर्ण समाज की हानि l हमारे ऋषि - मुनियों ने बताया है कि स्वस्थ रहने के लिए तन और मन दोनों का स्वस्थ होना बहुत जरुरी है और इसके लिए जरुरी है तन और मन की शुद्धता l ऋषियों ने बताया है कि श्रेष्ठ विचारों के चिंतन - मनन से मन परिष्कृत होता है l यह एक साधना है और इस साधना में व्यक्ति बहुत धीमी गति से आगे बढ़ पाता है l जो कुछ हमारे हाथ में है , जिसे हम स्वयं जल्दी कर सकते हैं और स्वस्थ रह सकते हैं वह है तन की शुद्धता l आज की सबसे बड़ी और दुर्बुद्धिजन्य समस्या यह है कि हम बाहरी तौर पर शरीर को साफ और सुंदर बनाने का बहुत प्रयत्न करते हैं लेकिन हमारे पास हमारी इस चमड़ी के भीतर एक आंतरिक शरीर भी है जिसमे हजारों नस - नाड़ियाँ , धमनियाँ --------- आदि हैं l बचपन से ही इन नस - नाड़ियों की सफाई की और कोई ध्यान नहीं देता इसलिए एक न एक बीमारियाँ शरीर को घेर लेती हैं l इनकी सफाई कैसे हो ? बहुत आसान काम है l हमारे योग के महान आचार्यों और विद्वानों का कहना है कि आक्सीजन हमारी नस - नाड़ियों में भरी हुई गंदगी को हटाने में झाड़ू का काम करती है l जैसे झाड़ू लगाने से घर की सफाई हो जाती है वैसे ही जब हम अपनी पीठ सीधी रखकर बैठते हैं और नाभि तक गहरी श्वास लेते हैं तो नाभि शरीर का केंद्र बिंदु है , आक्सीजन वहां पहुंचकर सारी नस नाड़ियों में झाड़ू लगाकर वहां जमी गंदगी को बाहर निकाल देती है l अब यदि हम दुर्बुद्धि के कारण विभिन्न कृत्रिम तरीकों से आक्सीजन को शरीर में जाने से रोकते हैं , हमारी नस - नाड़ियों में भरी हुई गंदगी दूर नहीं होगी और हम बीमार बने रहेंगे l मानव जीवन अनमोल है , स्वस्थ रहकर ही हम संसार के विभिन्न सुखों का आनंद ले सकते हैं l स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन होगा , तभी एक स्वस्थ समाज का निर्माण होगा l
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