पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं ---- ' जो आदमी अहंकार के साथ जीता है वह हमेशा चिंतित रहता है l उसे हमेशा परेशानी बनी रहेगी कि कौन क्या कर रहा है ? कौन क्या कह रहा है ? अहंकार हमेशा औरों पर निर्भर होता है l प्रशंसा अहंकार को फुसलाती है , प्रसन्न करती है l मूढ़ - से - मूढ़ आदमी को बुद्धिमान कहो तो वह प्रसन्न हो उठता है l अहंकार को पोषण देने वाला ही उसे प्रिय होता है और इसे चोट देने वाला उसे अप्रिय होता है l अहंकार का तात्पर्य है --- मैं l जहाँ मैं यानी कि अपने होने की प्रबलता और दृढ़ता है , वहीँ अहंकार है l अहंकार से विवेक का नाश होता है और इसी का परिणाम होता है कि अहंकारी व्यक्ति की सम्यक जीवन दृष्टि समाप्त हो जाती है और कभी - कभी तो वो स्वयं को ही परमात्मा मान बैठता है l
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