संत कबीरदास जी कहते हैं ---- ' बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय l जो दिल खोजा आपना , मुझ - सा बुरा न होय l हम व्यर्थ ही दूसरों के दोष ढूंढ़ने में लगे रहते हैं l सबसे पहले हमें स्वयं के दोषों को देखना चाहिए l महाभारत में एक कथा है --- ' एक बार शास्त्र शिक्षा देते समय आचार्य द्रोण के मन में दुर्योधन व युधिष्ठिर की परीक्षा लेने का मन हुआ l उन्होंने सोचा क्यों न इनकी व्यावहारिक बुद्धि की परीक्षा ली जाये ? " दूसरे दिन आचार्य ने दुर्योधन को अपने पास बुलाकर कहा --- " वत्स ! तुम समाज में अच्छे आदमी की परख करो और वैसा एक व्यक्ति खोजकर मेरे सामने उपस्थित करो l " दुर्योधन ने कहा --- " जैसी आज्ञा l " और वह अच्छे आदमी की खोज में निकल पड़ा l कुछ दिनों बाद दुर्योधन आचार्य द्रोण के पास आकर बोला ---- " गुरुदेव मैंने कई नगरों और गाँवों का भ्रमण किया परन्तु कहीं भी कोई अच्छा आदमी नहीं मिला l इस कारण मैं किसी को आपके पास नहीं ला सका l " इसके बाद आचार्य ने युधिष्ठिर को अपने पास बुलाया और कहा --- " बेटा ! तुम कहीं से कोई बुरा आदमी खोज कर ला दो l " युधिष्ठिर ने कहा --- " ठीक है गुरुदेव ! मैं प्रयत्न करता हूँ l " इतना कहकर वे बुरे आदमी की खोज में निकल पड़े l काफी दिनों बाद युधिष्ठिर आचार्य द्रोण के पास लौटे l आचार्य ने युधिष्ठिर से पूछा --- " किसी बुरे आदमी को अपने साथ लाए ? ' युधिष्ठिर ने कहा ---- " गुरुदेव ! मैंने सब जगह बुरे आदमी की खोज की , पर मुझे कोई भी बुरा आदमी नहीं मिला l इस कारण मैं खाली हाथ लौट आया l " शिष्यों ने पूछा ---- " गुरुवर ! ऐसा क्यों हुआ कि दुर्योधन को कोई अच्छा आदमी नहीं मिला और युधिष्ठिर किसी बुरे व्यक्ति को नहीं खोज सके ? " आचार्य द्रोण बोले ---- " जो व्यक्ति जैसा होता है , उसे सारे लोग वैसे ही दिखाई पड़ते हैं l इसलिए दुर्योधन को कोई अच्छा व्यक्ति नहीं दिखा और युधिष्ठिर को कोई बुरा आदमी नहीं मिल सका l " वास्तव में हमें संसार वैसा ही दिखाई देता है , जैसा हमारा देखने का नजरिया होता है l
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