श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- दुराचारी के लिए भी उनकी दृष्टि बड़ी सहानुभूतिपूर्ण है l भगवान दुराचारी के तो हो सकते हैं , पर कपटी के कभी नहीं हो सकते l ' मोहि कपट छल छिद्र न भावा l निर्मल मन जन सो मोहि पावा ll श्रीकृष्ण ने कुब्जा का कूबड़ ठीक कर दिया , अनन्य भाव से श्रीकृष्ण उसके हृदय में बसते थे l पर कपट लेकर आई रावण की बहन सूर्पणखा जो कहती थी --- '" तुम सम पुरुष न मो सम नारी " उसे अपनी नाक कटवा कर जाना पड़ा l भगवान कभी छल -कपट पसंद नहीं करते हैं l
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