पवहारी बाबा एक महान संत थे l स्वामी विवेकानंद अपने भ्रमण के दिनों में उनसे मिले थे और उनके प्रति गहन श्रद्धा का भाव रखते थे l बाबा एक बार आधी रात के समय ध्यान कर रहे थे , उसी समय चोर उनकी कुटिया में घुसा l धातु के कुछ बर्तन , एक कम्बल और कुछ कपड़े ही बाबा की कुल जमा - पूंजी थी l चोर ने बरतनों को उठाया और जल्दी से जल्दी वहां से निकल भागने का प्रयास करने लगा l जल्दबाजी में चोर के हाथ का एक बरतन कुटिया की दीवार से टकरा गया और आवाज सुनकर बाबाजी उठ गए l यह देख वह चोर घनी झाड़ियों से होकर भागने लगा l बाबा अपने आसान से उठे l उन्होंने कम्बल और कुछ वस्त्रों को हाथ में उठाया और चोर के पीछे भागने लगे l काफी दूर पीछा करने के बाद आख़िरकार उन्होंने चोर को पकड़ ही लिया l चोर भय से काँप रहा था l लेकिन बाबा जी ने चोर को पुलिस के हवाले नहीं किया , बल्कि वे चोर के चरणों में गिर पड़े और हाथ जोड़ कर आँखों में आँसू भरकर बोले --- " प्रभु ! आप चोर के वेश में कुटिया में पधारे , पर आपने कुछ चीजें छोड़ दीं l कृपया इन्हें भी अपने साथ ले जाएँ l " चोर भावविभोर हो गया l संत के बारंबार आग्रह पर उसे वे वस्तुएं स्वीकार करनी पड़ीं l संत ने एक अपराधी में भी ईश्वरतत्व को देखा l वह चोर भी संत के व्यवहार से इतना प्रभावित हुआ की वह आगे चलकर स्वयं एक अच्छे इनसान में बदल गया l संत कबीर ने ठीक ही कहा है ---- कबीर सोई दिन भला , जा दिन साधु मिलाय l सच्चा संत मिल जाये तो व्यक्ति का कल्याण हो जाये l
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