पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं ---- ' जिसने अपने को जितना मूल्यवान समझा संसार से उसका उतना ही मूल्य प्राप्त हुआ l ' टिटियन नामक एक प्रसिद्ध चित्रकार था l अनेक व्यक्ति उसके चित्रों को देखने और खरीदने आते थे l एक दिन एक धनिक कलाप्रेमी आया l उसने देर तक एक चित्र को देखकर पूछा ---- " मैं इस चित्र को अपने लिए चुनता हूँ l इसका मूल्य क्या है ? ' चित्रकार ने शांत स्वर में उत्तर दिया ---- " पचास गिन्नियां l " वह धनी व्यक्ति बोला ---- " एक छोटे से चित्र का इतना अधिक मूल्य ! आपको इस चित्र को बनाने में कठिनता l से एक सप्ताह लगा होगा l कागज , रंग आदि का खर्चा तो नहीं के बराबर है l फिर इसका दाम पचास गिन्नियां कैसे ? आप शायद भूल करते हैं l " टिटियन ने उत्तर दिया --- " महाशय , आप भूलते हैं l पूरे तीन साल निरंतर परिश्रम करने के बाद मैं इस योग्य बना हूँ कि ऐसे चित्र को चार दिन में ही बना सकता हूँ l इसके पीछे मेरा वर्षों का अनुभव , साधना और योग्यता छिपी है l " धनी व्यक्ति उसके उत्तर से संतुष्ट हुआ और उसने इतने बड़े मूल्य पर चित्र को खरीद लिया l यदि चित्रकार अपनी कला का मूल्य कम लगाता , तो निश्चित ही अपनी कला का मूल्य कम मिलता l अपने को मूल्यवान समझें
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