एक बोध कथा है ---- एक बार भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ एक नगर में पहुंचे l उस नगर के लोग भिक्षु - भिक्षुणियों को बहुत प्रताड़ित करते, गलियां देते , व्यंग्य करते दूषित लांछन लगाते l इन सबसे परेशान होकर आनंद ने भगवान बुद्ध से कहा --- भगवन ! किसी दूसरे नगर चलें l ' हँसते हुए भगवान बोले ---- ' यदि वहां के लोगों ने भी प्रताड़ित किया तो कहाँ जाएंगे ? ' आनंद बोले -- ' प्रभु ! संसार में नगरों की कमी नहीं है l ' तब भगवान बुद्ध बोले ---- " आनंद ! तुम बहुत भोले हो l जो यहाँ हो रहा है वह सभी जगह होगा l सभी जगह अँधेरा हमसे नाराज होगा l इनसानियत को नष्ट करने वाली बीमारी सभी जगह हमसे रुष्ट होगीं l धर्म के नेतागण हर जगह एक जैसे हैं l जब भी उनके स्वार्थ पर चोट पड़ती है तो वे यही करते हैं l हमारी रीति है अँधेरे को मिटाना और उनकी रीति है अँधेरे में जीना l हम अँधेरे पर चोट करने से नहीं चूक सकते और वे प्रतिशोध लेने से नहीं चूक सकते l उनके पास यही एकमात्र उपाय है l बड़ी गहरी तकलीफ में हैं वे बेचारे l वे दया के पात्र हैं l तू उन पर नाराज होने के बजाय उनकी पीड़ा समझ l '
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