एक बार अपने जन्म दिवस 12 जनवरी को गंगा तट पर टहलते हुए स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु भाइयों से कहा था ---- " निद्रित भारत अब जागने लगा है ---- जड़ता धीरे - धीरे दूर हो रही है , जो अंधे हैं वे देख नहीं सकते , जो विकृत बुद्धि हैं , वे ही समझ नहीं सकते कि हमारी मातृभूमि अब जाग रही है ---- अब उसे कोई रोक नहीं सकता l --- एक नवीन भारत निकल पड़ेगा -- हल पकड़कर , किसानों की कुटी भेदकर , मछुए , माली , मोची , मेहतरों की कुटीरों से l निकल पड़ेगा बनियों की दुकानों से , भुजवा के भाड़ के पास से , कारखाने से , हाट से , बाजार से l अपना नवीन भारत निकल पड़ेगा --- झाड़ियों , जंगलों , पहाड़ों , पर्वतों से l इन लोगों ने हजारों वर्षों तक नीरव अत्याचार सहन किया है , उससे पाई है अपूर्व सहनशीलता l सनातन दुःख उठाया है , जिससे पाई है अटल जीवनी शक्ति l यही लोग अपने नवीन भारत के निर्माता होंगे l "
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