विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर की बढ़ती हुई प्रतिभा और लोकप्रियता से लोग ईर्ष्या करने लगे थे l उन्होंने गुरुदेव की छवि को धूमिल करने के लिए विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं के माध्यम से अपने कलुषित प्रयास प्रारम्भ कर दिए l परन्तु गुरुदेव समभाव से सब सहन करते रहे तथा तनिक भी विचलित नहीं हुए l श्री शरतचंद्र को जब ये आलोचनाएं सहन नहीं हुईं तो उन्होंने गुरुदेव से कहा कि वे इन आलोचकों को रोकने का कुछ प्रयास करें l टैगोर ने शांत भाव से शरतचंद्र को समझाया कि , प्रयास क्या करूँ ? मैं उन जैसा नहीं बन सकता और उन्होंने जो मार्ग अपनाया है , वह भी मैं नहीं अपना सकता l
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