एक व्यक्ति के मरने का समय आया तो देवदूत उसे लेने पहुंचे l व्यक्ति ने जीवन में पुण्य भी किए थे और पाप भी l इसलिए देवदूत उसे एक पुस्तक हाथ में देते हुए बोले ---- " तुम्हारे पुण्य कर्मों के बदले तुम्हे यह पुस्तक देते हैं l यह नियति की पुस्तक है , इसमें सारे प्राणियों का भाग्य लिखा है , तुम चाहो तो इसमें कोई भी एक परिवर्तन अपने पुण्य कर्मों के बदले में कर सकते हो l " उस व्यक्ति ने पुस्तक के पन्ने पलटने प्रारम्भ किए तो उसमें अपना पन्ना देखने से पूर्व वह दूसरों के भाग्य के पन्ने पढ़ने लगा l जब उसने अपने पड़ोसियों के भाग्य के पन्ने देखे तो उनका भाग्य देखकर उसका मन विद्वेष से भर उठा l वह मन ही मन बोला ---- मैं कभी इन लोगों को इतना सुखी नहीं होने दूंगा और क्रोध में भरकर वह उनके पन्नों में फेर - बदल करने लगा l देवदूतों के द्वारा दिए गए निर्देश के अनुसार परिवर्तन एक ही बार किया जा सकता है l अत: जैसे ही उसने एक बदलाव किया , देवदूत ने वह पुस्तक उसके हाथ से ले ली l अब वह व्यक्ति बहुत पछताया , क्योंकि यदि वह चाहता तो अपनी नियति में सुधार कर सकता था , पर ईर्ष्यावश वह दूसरों की नियति बिगाड़ने में लग गया और यह अवसर गँवा बैठा l मनुष्य ऐसे ही जीवन में आये बहुमूल्य अवसरों को व्यर्थ गँवा देता है l
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