11 February 2021

WISDOM ------ ईर्ष्या में व्यक्ति स्वयं का अहित करता है

   एक  व्यक्ति  के  मरने  का  समय  आया   तो  देवदूत  उसे  लेने  पहुंचे  l    व्यक्ति  ने  जीवन  में  पुण्य  भी  किए   थे   और  पाप  भी  l   इसलिए  देवदूत  उसे  एक   पुस्तक  हाथ  में  देते  हुए  बोले  ---- " तुम्हारे  पुण्य  कर्मों  के  बदले   तुम्हे  यह  पुस्तक  देते  हैं   l   यह  नियति  की  पुस्तक  है  ,  इसमें  सारे  प्राणियों  का  भाग्य  लिखा  है  ,  तुम  चाहो  तो   इसमें  कोई  भी  एक  परिवर्तन   अपने  पुण्य  कर्मों  के  बदले  में     कर  सकते  हो   l  "  उस  व्यक्ति  ने  पुस्तक  के  पन्ने   पलटने   प्रारम्भ  किए   तो  उसमें  अपना  पन्ना  देखने  से  पूर्व  वह  दूसरों   के  भाग्य  के  पन्ने   पढ़ने  लगा  l   जब  उसने   अपने  पड़ोसियों  के  भाग्य  के  पन्ने   देखे   तो  उनका  भाग्य  देखकर  उसका  मन  विद्वेष   से  भर  उठा    l  वह  मन  ही  मन  बोला ---- मैं  कभी  इन  लोगों  को   इतना  सुखी  नहीं  होने   दूंगा   और  क्रोध  में  भरकर   वह  उनके  पन्नों  में   फेर - बदल  करने  लगा  l   देवदूतों  के  द्वारा   दिए  गए  निर्देश   के  अनुसार  परिवर्तन  एक  ही  बार  किया  जा  सकता  है   l   अत:  जैसे  ही  उसने   एक बदलाव  किया  ,  देवदूत  ने  वह  पुस्तक  उसके  हाथ  से  ले  ली    l   अब  वह  व्यक्ति  बहुत  पछताया   ,  क्योंकि  यदि  वह  चाहता   तो  अपनी  नियति  में  सुधार  कर  सकता  था  ,  पर  ईर्ष्यावश    वह  दूसरों  की  नियति  बिगाड़ने   में  लग  गया    और  यह  अवसर  गँवा  बैठा   l   मनुष्य  ऐसे  ही  जीवन  में  आये  बहुमूल्य  अवसरों   को   व्यर्थ  गँवा  देता  है   l   

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