पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " महानता एक प्रतीक है l जो महान दीखता हो , जिसे सब जानते हों , जो ख़बरों में प्रमुखता से हो , वास्तव में वह महान हो , यह जरुरी नहीं l महानता की झलक देखनी है तो उस बच्चे में भी दीख सकती है , जो अनुशासित है और अपने बड़ों से भी यही अपेक्षा करता है l घर में बाहर से आकर काम करने वाली वह महिला भी महान है , जो माँ - बाप की अनुपस्थिति में बच्चे को माँ का दुलार देती है , उसकी परवरिश का जिम्मा लेती है l सड़क पर चलता हुआ वह युवक भी महानता की श्रेणी में आता है , जो अपने समय व पैसे की परवाह किए बगैर किसी जरूरतमंद की मदद के लिए आगे बढ़ता है l इस तरह ऐसे कई उदाहरण हैं , जो महानता की झलक दिखलाते हैं l महानता के इन लक्षणों को जो जीवन भर बनाए रखते हैं , इन्हे अपने व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बना लेते हैं , वे ही एक दिन महानता का शिखर छूते हैं l " कन्फ्यूशियस के अनुसार --- जो साधारण हैं , वे भी महान हैं क्योंकि महानता हमारी सोच में है , यह हमारे अंदर बसती है l '
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