इसे मनुष्य की दुर्बुद्धि ही कहेंगे कि वे अपनी कमियों की ओर नहीं देखते , अपनी गलतियों को सुधार कर अपनी जड़ों को मजबूत नहीं करते बल्कि अपनी सारी ऊर्जा दूसरों की कमियाँ निकालने तथा दूसरों की जड़ें हिलाने में गँवा देते है l इसका परिणाम बड़ा दुःखदायी होता है l महाभारत का यह प्रसंग इसी सत्य को बताता है ------ महाभारत का एक पात्र है --- ' शकुनि ' , जो बहुत ही धूर्त , कुटिल और षड्यंत्र करने में माहिर था l शकुनि गांधार नरेश था , लेकिन वह हमेशा अपनी बहन गांधारी के पास हस्तिनापुर में ही रहा l शकुनि जैसा व्यक्ति अपनी बहन गांधारी जो महान पतिव्रता थी , गुरु द्रोण , भीष्म पितामह जैसी महान विभूतियों के बीच रहने पर भी अपनी कुटिलता को नहीं छोड़ सका l सारा जीवन वह दुर्योधन के मन में विषबीज बोता रहा l अपने भानजे दुर्योधन को युवराज बनाने के लिए उसने पांडवों को रास्ते से हटाने के _लिए अनेकों षड्यंत्र रचे l भीम को खीर में जहर पिलाया , पांडवों को अग्नि में भस्म करने हेतु लाक्षागृह का षड्यंत्र रचा , फिर पांडवों को जुए के लिए चुनौती देकर उनको बहुत अपमानित किया l इन सब षड्यंत्रों का परिणाम हुआ --- महाभारत l शकुनि खुद तो डूबा , अपने साथ पूरे कौरव वंश को ले डूबा l महाभारत में शकुनि तो मारा गया , उसके षड्यंत्रों में उसके भागीदार होने के कारण कौरव वंश का ही अंत हो गया l कोई आँसू पोछने वाला भी नहीं बचा l
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