पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' आलोचनाओं का जवाब देने में जो शक्ति और ऊर्जा खरच होती है , उससे कई रचनात्मक कार्य किए जा सकते हैं l जो आलोचनाओं की परवाह किए बिना अपने कार्य पर ध्यान देते हैं , वे ही कुछ अच्छा कर पाते हैं l इसलिए आलोचना तो सुननी चाहिए l यदि वास्तव में आलोचना के अनुसार हमारे अंदर कमियां हैं , तो उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए , न कि आलोचना करने वाले की निंदा करनी चाहिए l '
No comments:
Post a Comment